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से बढ़कर पाप है। क्योंकि सती प्रथा में स्त्री को थोड़े समय ही जलना पड़ता है, परन्तु षैधव्य से उन्हें जीवन भर जलना पड़ता है। प्रिय मित्रों ! रुढ़ियों के लिये 'सत्य' का गला मत घोटो, किन्तु 'सत्य' के लिये 'रुढ़ियों' का गला घोंट डालो।
मैं समस्त जैन समाज से भी निवेदन करूँगा कि वह 'विधवा विधाह' को अपनाये, क्योंकि "विधवा विवाह" के प्रचार के बिना जैनियों की उन्नति असम्भव है जैन समाज "विधवाविवाह" से गहुत दूर है यही कारण है कि संसार की अन्य समस्त जातियों में यह सब से गिरी हुई जाति गिनी जाती है । जैनसमाज को "विधवा विवाह" के प्रकाश की अत्यन्त आवश्यकता है ताकि वह इसके प्रचार में जुट कर अपने को उन्नत बनाये, अतः विद्वानों को चाहिये कि वे इस पर प्रकाश डालें।
आशा है कि पाठकगण इस लेख पर ठंडे दिल से निष्पक्ष विचार करने का कष्ट उठायेंगे और इस पर अपनी सम्मति अवश्य देंगे । जो महाशय मेरे लेख से सहमत न हों, वे इसके विरुद्ध अवश्य लिखें । मैं उनके लेख पर शान्ति से विचार करूँगा, क्योंकि मेरा आशय किसी बात पर हठ पूर्वक जमा रहना नहीं है । मेरी नीति तो यह है:न पर खण्डन से कुछ मतलब न मण्डन मुहमा अपना। सतासत निर्णय करते हैं, कराये जिसका जी चाहे ॥
* समाप्त