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है, परन्तु 'विधवा विवाह" का वर्णन कहीं नहीं मिलता फिर इस धर्मानुकूल कैसे कहा जा सकता।"
शास्त्रों में यदि "विधवा विवाह" का उल्लेख नहीं मिलता तो यह कैसे कहा जासकता है कि विधवा विवाह" धर्म विरुद्ध है । उसकी घटना का शास्त्रों में न होना उसकी प्रसिद्धता प्रगट नहीं करता पुगणों व शास्त्रों में वही घटनाएँ उल्लिखित हैं जो कुछ महत्व ( importanc. ) रखती हैं। जहां भी कुमारी विवाह का वर्णन पाया है । वहां कोई महत्व पूर्गा । important ) घटना अवश्य है "विधवा विवाह में कोई महत्व पूर्ण घटना की 'मम्भावना नहीं थी, अथवा कोई महत्वपूर्ण घटना नहीं हुई, इसलिये उसका उल्लेख भी नहीं हुआ। यदि उममें कोई महत्व पूर्गघटना होती तो इसका उल्लेख भी शास्त्रकार करते ।
घटनाएँ अच्छी भी होती हैं, और बुरी भी। शास्त्रों व पुराणों में दानों प्रकार की घटनाओं का उल्लेख मिलता है। शास्त्रकारों ने जहां अच्छी घटना का वर्णन किया है वहां उसका अच्छा फल भी दर्शाया है; और जहां किसी बुरी घटना । पाप । का वर्णन किया है वहां उसका बुरा फल दिखलाया है। बुरं कार्यों की निन्दा और उनका बुग फल दिखाने के लिये यह चित्रण हुआ है । जहां शास्त्रकारों ने पर स्त्री हरण. वेश्या मवन श्रादि अनेक कुकार्यों का वर्णन किया है, वहां 'विधवा विवाह' का जरा भी घर्गान नहीं किया। यदि 'विधवा विवाह" पाप होता तो शास्त्रकारों ने जहां अनेक पापों का वर्णन करक उनकी निन्दा की है। वहां कम से कम एक बार तो इसका वर्गान करके इमकी निन्दा करतं । मालूम हुआ कि "विधवा विवाह का पुगणां में उल्लेख न मिलना इसकी बुगई को प्रकट नहीं करता बल्कि इसकी भलाई व साधारणता को प्रगट करता है।