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________________ यह जो "सर्वार्थ सिद्धि" में ऐसा कथन अाया है. सामान्य रूप में है। क्योंकि प्रचार में जब कभी विवाह का विचार प्राता है, उस समय कुमार व कुमारी को ही संयोग आदर्श माना जाता है, इमी भाव में सर्वार्थ सिद्धि" में ऐसा कथन पाया है। "कन्यादानविवाहः इसमें दान का अर्थ रुपये पैसे देनं के समान नहीं है, किन्तु 'माता पिता द्वारा किसी योग्यवर के सुपुर्द कन्या का किया जाना है' ऐसा अर्थ है। जिसे लोग प्रचार में कन्यादान कहते हैं, वह वास्तव में विवाह है जो योग्य वर के साथ किया जाता है। यदि कन्या दान की वस्तु दान के समान माना जाय, तो वह जो कन्यादान राता है, उसी कन्या को किसी दूसरे को देसकता है । क्या यह हमार विरोधी मित्रों को इष्ट होगा? यदि "कन्यादानं विवाहः" के 'कन्या' शब्द पर सून्मता से विचार किया जाय. ती नया ही रहस्य दीखता है । 'कन्या शब्द का अर्थ केवल 'कुमारी ही नहीं है बल्कि साधारण स्त्री देखिये-श्री वामन शिवराम आपट अपने संस्कृतअंग्रेजी कोष में पृष्ट ३३३ के दुसरे कालन में कन्या शब्द के कई अर्थ देते हैं:१-An unmarrierl girl or laughter ( एक अविवा हिता लड़की या पुत्री) A girl ten yeurs (okl. ( दस वर्ष की लड़की) A virgili, maiden. ( अक्षत यांनि, या, अविवाहिता) A women in s, eneral. ( एक साधारण स्त्री) नीचे लिखे श्लोक में भी 'कन्या' शब्द साधारण स्त्री के लिये प्रयुक्त नहीं हुआ है:
SR No.010223
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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