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* विधवा विवाह प्रकाश ***
* यह बात सर्व पर प्रगट है कि अाजकल 'विधवाविवाह" की चर्चा देशव्यापी होती आ रही है। एक समय वह था जब कि लोग "विधवा विवाह" को महा पातक समझते थे,
और इसके नाम मात्र से कांपते थे; परन्तु अब वह समय नहीं रहा है, सब इसकी आवश्यकता का अनुभव कर रहे हैं, यहां तक कि सुधार मार्गमें सबसे पीछे रहने वाले सनातन धर्मी व जैन धर्मी बड़े बड़े विद्वान घ नेता भी इसके प्रचार में तन मन धन से अग्रसर हैं।
जैनसमाज में भी कुछ समय में यह चर्चा चल रही है। कतिपय रुढ़िदास इसका विरोध करते हैं और इसके समर्थकों व प्रचारकों को कोस २ कर समाज को भड़काने का प्रयत्न करते हैं; परन्तु उनका विरोध सभ्य और शिक्षित समाज की दृष्टि में कुछ मूल्य नहीं रखता। दुर्भाग्य में वे अभी तक मिथ्यात्व के उदय से "विधवा विवाह" के रहस्य को नहीं समझ पाये हैं, वे रुढ़ियों को ही धर्म मान बैठे हैं यही कारण है कि वे "विधवा विवाह" को पाप कह कर व्यर्थ ही पाप के भागी बनते हैं। "खैर ? सौभाग्य से जैनसमाज को "सनातन जैन (वर्धा ) व” “जैन जगत (अजमेर)” पत्रों का दर्शन होता रहता है जिनमें पूज्य ब्रशीतलप्रसाद जी व साहित्य