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इलाहाबाद के प्रसिद्ध वकोल मिस्टर सत्यचन्द्र मुकरजो को सहायता से सेशन जज, मेरठ की अदालत में अपील को लेकिन विद्वान अज ने अपने २० नवम्बर सन् १९१८ के फैसले में अदालत मातहत को तजवीज बहाल रखी । अपराधियों ने फिर हाई कोर्ट, इलाहाबाद में निगरानी के लिये प्रार्थना की, लेकिन यह निगरानी भो श्रीयुत माँनरेबल मिस्टर टी. सी. पंगट, चीफ जस्टिस हाई कोर्ट इलाहाबाद ने ता० २८ मार्च सन् १९१८ को खारिज करदी। इससे साफ जाहिर है कि विधवा विवाह कानून से भी जायज़ है । अतः किसी को भी यह दुस्साहस न होना चाहिये कि यो हो मनमानी पंचायतें कर के किसी पुरुष को जो ऐसे शुभ कार्य में सहायक होता है, बिरादरी से बाहर करने की धमकी दे अथवा उसको निन्दा या अपमान करे।
धन्य है, पंजाव के उस वोर समाज सधारक वैश्य रईस सर गंगा राम अग्रवाल, राय वहादुर, क. टी. सी. आई., ई.एम.बो.ओ. को कि जिसने लाहौर में विधवा विवाह सहायक सभा स्थापित करके हिन्दू जाति को इस घोर पतन से बचाने का बीड़ा हाथ में लिया है। इस सभा की ओर से हिन्दुस्तान की ब्राह्मण, क्षत्रिय वैश्य और अन्यान्य आतियों में हजारों विधषा विवाह हो चुके हैं तथा बड़ी तेजी से हो रहे हैं और जगह २ प्रान्तों में विधवा विवाह के प्रचार की शाखा सभाएं भी स्थापित होती जा रही है । इमें जहां तक मालूम हुमा है, दया प्रेमी सर गंगाराम साहब ने इसके प्रचार के लिये लग भग १५-२० हजार रुपयासालाना आमदनी की अच्छी जायदाद निकाल रखी है।