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________________ युवकों की संख्या बढ़ती है। यह भी कोई मानन के लिये तैयार नहीं होगा किसारे ही कुवार ब्रह्मचारा बने रह कर शान्ति के साथ अपना जीवन व्यतीत करते हों । भस्तु ! ये लोग भी कई किस्म के पापाचार रंचकर समाज में अशान्ति का बीज वपन कर रहे हैं। इस तरह समाज का पतन ही पतन नजर मारहा है। इस पर यदि विचार किया जावेगा तो इस पतन की समस्त जिम्मेदारियां इस निर्दयी पुरुष जाति के ही ऊपर है। प्रकृति का नियम है कि मनुष्य जाति के सामने जिस प्रकार का आदर्श रखा जावेगा उसी प्रकार उसके हृदय में भावों की उत्पत्ति होगी। जब कि यह निर्लज्ज पुरुष समाज अपनी ४०/४० और ५०५० बल्कि कई मरतवा इससे भी अधिक ६०६० वर्ष की प्रायुमें अपनी पाशविक कामेच्छार्यो को पूर्ण करने के लिय निर्दयी होकर १०१० और १२॥१२ वर्ष की सुकुमार घोर अबोध बालिकामों के साथ विवाह करक घर पर आते ही वहुत जल्द 'राती जगा' [एकान्त वास] करने में व्याकुन हुमा रहता है तो यह समझ में नहीं आता कि उसे छोटी २ उम्र में होजाने वाली बाल विधवाओं को जबरन सन्यासिनीयां बनाकर जन्म भर के निय उनसे कठिन संयम के पालन की प्राशा रखने का अधिकार ही कसे हो सकता है ? पवित्र नारी जाति के सामन इस निर्लज्ज पुरुष समाज का कैसा निन्दनीय और घृणित श्रादर्श है। घर में एक १५ २० वर्ष की युवत: विधवा पुत्र बधू काली साड़ी नोंद कर और चूड़ियां फोढ़कर सन्यासिनी बनी बेटी है तकिन ५० वर्ष के सुलग जी थलियों के जोर से एक १२ वर्ष की बच्ची को बन्दिनी बनाकर रंग भवन में सुहाग की रात मनाते हैं। घर में एक १० वर्ष की छोटी बहिन दुर्भाग्य से रंडापे की गत काट रही है लेकिन मौजाई के मान पर ३०-३५ वर्ष की उम्र में बड़े दादा भाई तो तीसरी शादी कर ही लाते है आज तीज का त्यौहार चमड़ी के जटक जाने पर भी पचास २
SR No.010223
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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