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खुची सड़ी बुसी माग हो अब इनके भाग्य में विधाता ने लिखा है दस वर्ष से कम उम्र को विधवाओं की संख्या में ५ वर्ष से कम उम्र को १२०२४ विधवार ऐसो दुध मुही नन्हों २ बच्चियां हैं जो अभी मानस्तन के दूध का स्वाद भी नहीं भूल गई है। आगे चलिये, इनमें मे २ वर्ष तक की उम्र वाली ४८ विधवाएं ऐसी हैं जो अभी घुटने के बलही चल मरती है और जो तोतलो २ बोली बोलती हुई माँ को अंगुली पकड़ कर भी खड़ो नहीं हो सकती हैं। कहाँ नक कहा जाय ? और भी ज़रा हृदय को थाम कर सुनिये, इनमें से ६१२ विधवाएं एक वर्ष से नीचे की उम्र वाली हैं। ये शिशु विधवाए अभी मान स्तन पर हो चिपटी रहती हैं और जिनके मह में प्रभो दुध के भी दांत नहीं पाये हैं। दुनियां के किसो देश में भौमतन इतनी विधवा नहीं है जितनी कि इम अभागे देश में
और खास कर इस हिन्दू समाज में है। मुश्किल से ऐसा कोई भाग्य शालीघर पाया जावेगा कि जिसमें कोई विधवा नहीं हो । प्रत्येक घर विधवा पाश्रम बना हुआ है। हा : रिखते हुए हृदय टूट जाता है कि इस भारत वसुन्धरा की ५५ वर्ग से नीचे उम्र को ३३०००% हित विधवा पुत्रियां अभी अपने अपने पतियों के साथ २-४ नोज त्योहार ही नहीं व्यतीत कर सको हैं। इन शीघ्र हो 'खलने वाली कुसुम कतिमा पर विधवा पन का तुषार पटक दिया गया है। इन बाइया के सुहागपो मुकुट के मणि को दुर्देव कीन कर ले गया है । घड़ी भर पहले इनको 'सुहागन' कहा जाता थद् लेकिन घड़ी भर ६ाद ही निई ममाज ने इस वकष को छीना लिया; अब इनको हत्यारिनो चंडालिनी और पति भक्षका आदि नामी से पुकारा जाता है। भय मांगलिक प्रसंगों पर इन बाइयों का मुख देखना भो अपशकुन माना जाता है । इनके प्रिय वस्त्राभूपण छीन कर उन्हें फटे टूटे मैले कुचैले कपड़े पहनने को दे दिये गये हैं