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________________ विवाह आठ तरह का होता है, उसी तरह विधवा का विवाह भी पाठ तरह का होता है। जैसे सजातीय विवाह पाठ तरह होता है, उसी प्रकार विजातीय विवाह भी पाठ तरह का ही होता है। सब तरह के विवाहों में ये आठ भेद हो सकते हैं। आश्चर्य है इस हलकी सी बात को भी विधवा विवाह के विरोधी समझ नहीं पाते। कई लोग कहते हैं कि "पुरुषों को प्रकृति ने ही अधिक अधिकार दिये हैं और स्त्रियोको थोड़े अधिकार दिये हैं । देखो! पुरुष वर्ष भर में सो दौ सो बच्चे भी पैदा कर सकता है और स्त्री सिर्फ एक ही बच्चा पैदा कर सकती है" इसका उत्तर भी बहुत सरल है । यदि ऐसा है तो पुरुषों का पुनर्विवाह तुरन्त गेक देना चाहिये और स्त्रियों को पुनर्विवाह तुरन्त चालू कर देना चाहिये, क्योकि मी सन्तान पैदा करने के लिये एक पुरुष से ही काम चल सकता है। इसलिये निन्यानवे अगर न हो या कुवारे रहें तो भी कोई हानि नहीं है लेकिन स्त्री तो एक भी कुमारी या विधवा हो जायगी तो एक बच्चा घट जावंगा। यह कहां तक न्याय है कि जिस चीज़ की हमें अधिक ज़रूरत है वह तो व्यर्थ पड़ी रह और जिसकी ज़रूरत हमें थोड़ी है उस की ज्यादा कदर की जाय । मतलब यह है कि प्रकृति ने जो स्त्री पुरुष में अन्तर उत्पन्न कर दिया है उससे भी मालूम होता है कि विधुर विवाह की अपेक्षा विधवाविवाह सौ गुना अधिक आवश्यक है। कई सज्जन कहने लगते हैं कि विधवाएँ तो पाप कर्म के उदय से होती है। उन्हें अपने कर्म का उदय शान्ति से सह लेना चाहिये; विवाह करने की क्या ज़रूरत है ? बहुत ठीक है, परन्तु दुःख इतना ही है कि यह सारी कर्म की फिलासफ़ी महिलाओं के सिर ही मढ़ दी गई है । जैसे विधवाएँ पाप
SR No.010223
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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