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उनकी बेशरमी पर ताज्जुब होता है । अरे भाई ! तुम मर्द हाकर जव काम की जगसी चपेट नहीं मह सकते,तो विचारी नियाँ कैसे महेंगी । जिस काम को नुम स्वयं करते हो, उमी पर तुम दूसरों को दगड देना चाहते हो । भला इस बेहयाई का कुछ ठिकाना है। जो विधवा विवाह के विरोधी हैं, उन्हें चाहिये कि वे एक अलग समाज स्थापित करें जिसमें न तो पुरुषों का पुनर्विवाह होता हो न स्त्रियों का ।
बहुत से लोग विधवा-विवाह के निषेध के लिये स्त्रियों को श्राग करने लगे हैं । परन्तु हम कुमारी विवाह के निषेध के लिये सैकड़ों कन्याओं को खड़ा करदें नो क्या आप कुमारी विवाह बन्द कर देंगे ? बात यह है कि शताब्दियों की गुलामी ने स्त्रियों के शरीर को ही नहीं. किन्तु अात्मा और हृदय को भी गुलाम बना दिया है । उनमें अब इतनी हिम्मत नहीं है कि वे हृदय की बात कह सके। अमेरिका म जब गुलामी की प्रथा के विरुद्ध अब्राहमलिंकन ने युद्ध छड़ा ना स्वयं गुलामा ने लिकन माहिव के विरुद्ध अपने मालिका का पक्ष लिया और जब वे म्वतन्त्र हो गये तो भी मालिकों की शरण में पहुँचे । गुलामी का ऐसा ही प्रभाव पड़ता है। ज़रा स्वतन्त्र नारियों से आप ऐसी बात कहिय, युगप की स्त्रियाले विधवा-विवाह के विरोध करने का अनुरोध कीजिए, तब आपको मालूम हो जायगा कि स्त्रीहृदय क्या चाहता है ? हमारे देश की लजालु स्त्री कार्य कर सकती है, पर कह नही सकनी । एक विधवा स-जिसके चिह्न वैधव्य पालन के अनुकल नहीं थे-एक महाशय ने विधवा-विवाह का ज़िकर