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________________ ( २ ) नहीं है। श्रथवा दूसरे शब्दों में इसे यों कहना चाहिये कि यह उतना ही बड़ा पाप है जितना कि कुमारी विवाह । जो लोग यह कहते हैं कि विधवा विवाह प्रादर्श नहीं है, लेकिन... .." उनके शब्दों से भी मैं सहमत नहीं हूँ। लेकिन' 'किन्तु' 'परन्तु' लगा कर विधवा-विवाह को नीची दृष्टि से देखना में समझ का फेर समझता हूँ। आदर्श तो ब्रह्मचर्य है, उससे उतरती अवस्था विवाह हे: फिर चाहे वह विधवा के साथ हो या कन्या के साथ । विवाह पाप होने पर भी. जिन युक्तियों और आवश्यकताओं से हम कुमारी विवाह को उचित समझते है, उन्हीं युक्तियों और आवश्यकताओं से विधवा विवाह भी उचित है । कन्या का विवाह इस लिये किया जाता है कि जिससे सन्तान चले और कन्या दुगचारिणी न हो जावे। यद्यपि अभी तक वह दुगचारिणी हुई नहीं है, सिर्फ दुगचारिणी होने की सम्भावना है। इसी प्रकार विधवा-विवाह भी इसी लिये किया जाता है जिससे कि सन्तान चले और वह दुराचारिणी न हो जाव । भले ही वह अभी तक दुराचारिणी न हुई हो, सिर्फ सम्भावना ही हो। जो लोग यह कहने लगते हैं कि "विधवाओन क्या आपके पास दरख्वास्त भेजी है ?" उनकी यह भी सोचना चाहिये कि कुमारी कन्यायें भी क्या दरख्वास्त भेजनी हैं ? कुमारियों के विषयमें तो भ्रूणहत्या और गुप्त व्यभिचार की भी शिकायते यहाँ सुनने में नहीं पाती, फिर भी आप उनका विवाह कर देते हैं: तब विधवा समाज ती भ्रूण हत्या, गुप्त व्यभिचार आदि कार्यों द्वारा ज़बरदस्त दरख्वास्ते भेजती है,फिर उनका विवाह क्यों न किया जाय ? विधवा-विवाह के निषेध के लिये लोग
SR No.010223
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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