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भोज्य कहें और पुरुष को भोजक, यह बात सर्वथा अनुचिन है । क्योंकि जिस प्रकार स्त्री, पुरुष के लिये भोज्य है उसी प्रकार पुरुष, स्त्री के लिये भोज्य है । इसीलिये स्त्री जूठी हो और पुरुष जूठा न हो, यह नहीं कहा जा सकता । जब पुरुष जूठा हाकर के भी स्त्री के लिये भोज्य रहता है तो स्त्री भी क्यों न रहेगी ?
तीसरी बात यह है कि स्त्री पुरुष के सम्बन्ध को श्रक्षेपक ने गांग मान लिया है जबकि वह उपभोग है । भांग का विषय एक बार हो मांगा जाता है, इसलिये उसमें जूठापन श्राजाता है: परन्तु उपभोग अनेकवार भांगा जाता है । सभ्य आदमी अपना ही जूठा भोजन दूसरे दिन नहीं खाना जबकि एक ही वस्त्र को अनेकवार काम में लाता रहता है । अगर स्त्री को भोज्य माना जाय तो जिस स्त्री को आज मांगा गया उसको फिर कभी न भागना चाहिये । तब नो हर एक पुरुषको महीने में चार चार छः छः स्त्रियों की आवश्यकता पड़ेगी अन्यथा उन्हें जूठी स्त्री से ही काम चलाना पड़ेगा । स्त्री और पुरुष के सम्बन्धमें तो दोनोंही सुखानुभव करने हैं, इसलिए कौन किसका जूठा है यह नहीं कहा जा सकता । फिर भी जो लोग स्त्रियों में जूठेपन का व्यवहार करते हैं वे माता को भी जूठा कहेंगे, क्योंकि एक बच्चे ने एक दिन जिस माता का दूध पीलिया वह दूसरे दिन के लिये जूठी हो गई । और दूसरे बच्चो के लिये और भी अधिक जूठी हो गई । इतना ही नहीं इस दृष्टि से पृथ्वी, जल, वायु श्रादि जूठे कहलायँगे, सारा संसार उच्छिष्टमय हो जायगा, क्योंकि किसी भी इन्द्रिय का विषय होने से जब पदार्थ उच्छिष्ट माना जायगा तो स्पर्श करने से पृथ्वी, जल और वायु जूठी कहलायेगी और आँखों से देख लेने पर सारा संसार जूठा कहलायगा । यदि