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से लिया गया है। हमारे विषय में अर्थ बदलने की कुकल्पना आप भले ही करें, परन्तु अनुवादक के विषय में इस कल्पना की कोई जरूरत नहीं है । इसके अनुवादक वेदरत्न विद्याभा. कर, न्यायतीर्थ, सांख्यतीर्थ और वेदान्त विशारद हैं।
दूसरी बात यह है कि 'विल लाभे धातु का प्रयोग विवाह अर्थ में होता है । मनुम्मृति में विन्देन देवरः का पर्याय वाच्य भर्तुः मोदर भ्राता परिणयेत् किया है । इमी तरह श्लोक ६-६० में 'विन्दत सदृशं पति' का 'वरं स्वयं वृणोन पर्याय माक्य दिया है। खुद कोटिलीय अर्थशास्त्र में विद्ल धातु का प्रयोग वरण के अर्थ में हुमा है । जैसे-ततः पुत्रार्थी द्वितीयो विन्दत अर्थात् पहिली स्त्री से अगर १२ वर्ष तक पुत्र पैदा न हो ता पुत्रार्थी दूसरी शादी करले । यहाँ विन्देन का अर्थ शादी कर ही है। इसी तरह और भी बहुत से प्रयोग हैं । पहिले हमने थोड़े से प्रमाण दिये थे, अब हम ज़रा अधिक देंगे । उन में ऐसे प्रमाण भी होंगे जिनमें विद्ल का अर्थ पास जाना न हो सकेगा।
___ "मृते भत्तरिधर्मकामातदानीमेवास्थाप्याभरणं शुल्क शेषं च लभेत ॥ २५ ॥ लावा वा विन्दमाना सवृद्धिकम मयं दाप्येन ॥ २६ ॥ अर्थात् पति के मरने पर ब्रह्मचर्य से रहने वाली खत्री, अपना लो धन और प्रवशिष्ट शुल्क (विवाह के समय प्राप्त धन ) ले ले । अगर इस धन को प्राप्त कर वह ( विधवा ) विवाह करे तो उससे ज्याज सहित वापिस ले लिया जाय।
पाठक विचार कि यहाँ "विन्दमाना" का अर्थ विवाह करने वाली है न कि पति के पास जाने वाली क्योंकि पति तो मर चुका है। और भी देखिये
'कुटुम्बकामातुश्वसुरपतिदतं निवेशकाले खभेत ॥२७॥