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। २० ) कभी उद्धृत न किये जाने । पाठक इनके अर्थ पर विचार करें, पूर्वापर सम्बन्ध देखें और नियोग तथा विधवाविवाह के भेद को समझे। ये श्लोक नियोगप्रकरण के हैं।
नियोग में सन्तानोत्पत्ति के लिये सिर्फ एक बार सभाग करने की प्राक्षा है। नियांग के समय दोनों में सम्मांग क्रिया बिलकुल निर्तित होकर करना पडती है तथा किसी भी तरह की रसिकता से दूर रहना पड़ता है । देखिये
ज्येष्ठी यवीयसी मार्यो यवीमान्वाग्रजस्त्रियम् । पतितो भवतो गत्या नियुक्तावप्यनापदि ॥४-५%!!
अगर विधवा क सन्तान हो (अनापदि-सन्तानामाव बिना ) ता उपका ज्येष्ठ या देवर नियाग करे तो पतित हा जाते हैं।
देवगाहा सपिंडाद्वा स्त्रिया सम्यनयुक्तया। प्रजेप्सिताधिगन्तव्या मन्नानस्य पग्निये ॥६-५६ ॥
सन्तान के नाश हाजाने पर गुरुजनों की प्राशाम विधि. पूर्वक देवर से या और सपिंड से । कुटुम्बी म) इच्छित मनान पैदा करना चाहिये। (श्रावश्यकता होने पर एक में अधिक सन्तान पैदा की जाती है । हिन्दु पुराणों के अनुमार धृतराष्ट्र पांडु और विदुर नियांगज सन्तान हे )।
विधमायां नियुक्तम्तु घृतातो पाग्यता निशि । एकमुम्पादयेत्पुत्रं न द्वितीयं कथचन ॥ ६-६० ॥
विधवा में (आवश्यकता होने पर सवामें भी) समान कलिय नियक्त पुरुष, सारे शरीर में घी का लेप करे मौन रक्वे और एक ही पुत्र पैदा करे।
विधवायां नियोगार्थे निवृत्त नु यथाविधि । गुरुवच स्नुषावश्च वतैयातां परम्परम् ॥६-६२॥