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________________ नहीं होती तो शास्त्रों की बातों को छिपाकर लोगों को आँखों में धूल झांकते है। आक्षेप ( स्त्र )- सुदाप सुनार नहीं था । ( श्रीलाल, विद्यानन्द)। समाधान-गने समय में प्रायः जाति के अनुसार ही लोग आजीविका करते थे, इमलिय आजीविका के उल्लेख म उसकी जाति का पता लग जाना है। अगर किमी को चर्मकार न लिखा गया हा परन्तु जन बनाने का बात लिखी हा, माथ ही प्रेमी कोई बात न लिरनी हा जिसस वह चमार मिद्ध न हो ना यह मानना ही पड़ेगा कि वह चमार था । यहाँ बात सुदृष्टि की है। उसन गनी का हार बनाया था और मरने के बाद मरे जन्म में भी उमने हार बनाया। अगर वह सुनार नही था ना (१) पहिले जन्म में वह हार क्या बनाना था ? ( २) ब्रह्मचाग नमिदत्त ने यह क्यों न लिखा कि यह था ता वैश्य परन्तु सुनार का धन्धा करता था ? (३) मा जन्म में जब गजकर्मचार्ग मब सुनाग के यहां चक्कर लगा रहे थे तब अगर वह सुनार नही था ता उसके यहाँ क्या प्राय ? सुरष्टि के मुनार होने के काफी प्रमाण है। श्राज में १६ वर्ष पहिले जो इस कथा का अनुवाद प्रकाशित हुआ था ओर जो स्थितिपालको के गुरु पं० धन्नालाल जी का समर्पित किया गया था उममें भी सुदृष्टि को सुनार लिखा है। उसकी व्यभिचारजातना पर ना किसी का सन्देह हो ही नहीं सकता। हाँ, धावा देने वालों की बात दुसरी है। सत्ताईसवाँ प्रश्न । सोमसन त्रिवर्णाचार का हम प्रमाण नहीं मानते परन्तु
SR No.010223
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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