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समाधान-शान्तिमागर का मनि बनना अगर विकृत रूप है ना दम्मी को मान न बनने देने वाले शान्तिसागर को मनि क्यों मानने है ? अगर मनि मानते हैं ना किसी का मनि बनन का अधिकार नही छिन सकता।
होना और मकना में कार्य कारण भाव है। जहाँ होना है वहाँ मकना अवश्य है । अगर कोई म्वर्ग जाना है तो इससे यह बात आग ही सिद्ध हो जाती है कि वह म्वर्ग जा सकता है। जब शास्त्रों में ऐम मनियों के बनने का उल्लख है, उन्हें मात नक प्रान हुआ है तब उन्हें मुनि बनन का अधिकार नहीं है ऐमा कहना मृखता है।
मशे शास्त्रामें कही किमीका कोई अधिकार नहीं छीना गया। अच्छे काम करन का अधिकार कभी नहीं छीना जा मकता । अथवा नर्गपशाच गक्षस ही ऐस अधिकारी का छीनने की गुम्नाम्बी कर सकते है।
छब्बीसवाँ प्रश्न । विधवाविवाह के विगधियों का यह कहना है कि उमम पैदा हुई मन्नान मोक्षाधिकारिणी नहा होती। हमाग कथन यह है कि विधवाविवाह से पैदा हुई मन्नान व्यभिचारजान नहीं हैं और माक्षाधिकारी नो व्यभिचार जान भी होने है। आगधना कथा काष में व्यभिचारजान सुदृष्टि का चरित्र इसका ज़बर्दस्त प्रमाण है।
भाक्षेप (क)-सुरष्टि म्वयं अपने वीर्य से पैदा हुये थे । (श्रीखाल ) विनाहिन पुरुष में भिन्नार्य द्वाग जो सन्तान हा वह न्यभिचारजात मन्तति है । बालबा, क्षत्री, वैश्य इन तीन वर्षों की कोई स्त्री यदि परपुरुषगामिनी हो जाय नी परपुरुषात्पन्न सन्तान मोक्ष की अधिकारिखी नहीं