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नेईसवाँ प्रश्न । इस प्रश्न का सम्बन्ध विजातीय विवाह से अधिक है। विजानीय बियाह के विषय में इतना लिखा जा चुका है कि प्रय जो कुछ लिखा जाय वह सब पिएपंषण होगा।
प्राक्षेप ( क)-मामदेव करते हैं कि जानियाँ अादि है । ( श्रीलाल विद्यानन्द ।
ममाधान-जानियाँ दा नरह की हैं-कल्पित, अकल्पित । पकन्द्रिय श्रादि अकल्पित जानियाँ है । बाको ब्राह्मण क्षत्रियादि कहिग्न जातियाँ हैं। एकन्द्रिय प्रादि भरिपन जातियों अनादि हे । कलियन जानियाँ अनादि नही है, अन्यथा इनकी रचना ऋषभदेव ने की या भग्न ने कायह बान शास्त्रों में क्यों लिखी होतो?
माने । न -नामचन्द्र मिद्धान्तचक्रवर्ती ने १२ खरब जानियां कही हैं। ( श्रीलाल )
मपाधान-माक्षरक अगर किमी पाठशाला में जाकर गाम्मटमार पदले नाघह नमिचन्द्रका समझने लगेगा। नामचन्द्र ने सिर्फ पाँच ही जातियों का उल्लेख किया । १२ बरब जानिया का उम्ख बनाने के लिये हम आक्षेपक को चुनौती दत है।२लन कोटी कुलों का उल्लख नमिचन्द्र ने ज़रूर किया है परन्तु उन कुलों को जाति समझ लेना घोर मुर्खना का परिचय देना है। गाम्मटसार टीका में ही कुल भेदाका मर्थ शरीगत्पादक वर्गणाप्रकार किया गया है। अर्थात् शगेर बनने के लिये जितनी तरह की वर्गणाएं लगती हैं उतने ही कुन है। एक हो यानि मे पैदा हान वाले शरीगेके कुल लाखों होते हैं क्योंकि यानिभेदसे कुलके भेद लागोंगुणे हैं और एक ही जानि-में चाहे वह कल्पित हा या अकलिपन -लाखों