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( १८२) माक्षेप ( च (-मुनियों के साथ श्रावक समूह का चलना नाजायज़ मजमा नहीं है।
समाधान-केवली को छोड़कर और किसी के साथ श्रावकसमूह नहीं चलना। हाँ, जब भट्टारको की सृष्टि हुई और उनमें से जब पिछले भट्टारकों ने धर्मसंवा के स्थान में समाज से पूजा कराना और नवाबी ठाठ से रहना ही जीवन का ध्येय बनाया तब अवश्य ही उनने ऐमी अाझाएँ गढ़ डाली जिससे उन्हें नावबी ठाठ से रहने में सुभीता हो । प्राचीन लोगों के महत्व बढ़ाने के बहाने उनने अपने म्वार्थ की पुष्टि की। पीछे भाले मनुष्यों ने उसे अपना लिया।
माक्षेप (छ)-गटी ना पाठवी प्रतिमा धारी भी नहीं बनाता। फिर मुनियों में ऐसी बात कहना तो प्रमभ्य जोश की चरम सीमा है। (विद्यानन्द )
समाधान-जिन असभ्य ढोंगियों के लिये रोटी बनाने की बात कही गई है वे मुनि. आठवी प्रतिमाधारी या पहिली प्रतिमाधारी नोदर, जैनी भी नहीं है, निकृष्ट मिथ्याष्टि हैं। दूसरी बात यह है कि प्रारम्भ त्याग में प्रारम्भत्याग तो होना चाहिये । परन्तु ये लोग पेटपूजा के लिये जैसा घोर प्रारम्भ कराते हैं उसे देखकर एक उद्दिप्रत्यागी तो क्या प्रारम्मत्यागी भी शामिन्दा हो जायगा । विशेष के लिये देखो २१-क । प्रकृत के विषय में २१-ख में विचार किया गया है।
माक्षेप । ज)-मुनियों के लिये अगर केवल अप्रासुक भोजन का ही विचार किया जाता तो मूलाधार आदि में १६ उद्गम दोष और ४६ अन्तगय टालने का विधान क्या है ?
(विद्यानन्द) समाधान-दोष और अन्तराय के भेद प्रभेद जो मला. धार आदि में गिनाये गये है वे तीन बातों को लक्ष्य करके ।