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________________ खड़ा होता है कि अब आप रक्त मांस में शुद्धि समझते हैं नो उसके भक्षण करने में क्या दोष? आक्षेप (ज)-द्रव्यवेद (स्त्री) पाँचवेंना क्यों ? भाव. चंद नघमें तक क्यों ? क्या यह सब विचार रक्त माँस का नहीं है । (विद्यानन्द ) ममाधान-वेद को रक्तमांस समझना भी अद्भुत पागिडत्य है । खैर, यह प्रश्न भी आक्षेपक के ऊपर पड़ता है कि एक ही माता पिता से पैदा होने वाले भाई बहिन की रक्तः शुद्धि ता समान है फिर म्त्री पाँच गुणस्थान तक ही क्यों ? गदि स्त्रियों में रक्त माँम की शुद्धि का प्रभाव माना जाय तो क्या उनके सहोदर भाइयों में उनकी कुल जाति जुदी मानी जायगी ? और क्या सभी स्त्रियाँ जारज मानी जायँगी ? माक्षेप (झ)-बिना वज्र वृषभनागच संहनन के मुक्ति प्राप्त नहीं होती। कहिये शरीर शुद्धि में धर्म है या नहीं ? समाधान--संहनन को भी रक्त मांस शुद्धि समझना विचित्र पागिडत्य है । क्या व्यभिचारजातों के वज्र वृषभनागच संहनन नहीं होता? क्या मच्छों के बज्र वृषभनागच मंहनन नहीं होता ? यदि होता है तो इन जीवों का शरीर ब्राह्मी सुन्दरी सीता आदि देवियों और पञ्चमकाल के अनकवस्ती तथा अनेक प्राचार्यों के शरीर में भी शुद्ध कह. लाया क्योंकि इनके वज्रवृषभनाराच संहनन नहीं था । कहीं रक्त शुद्धि का अर्थ कुलशुद्धि जातिशुद्धि करना, कहीं संहनन करना विक्षिप्मना नहीं तो क्या ? आक्षेप ( अ )--सुभग आदि प्रकृतियों के उदय से पुण्यात्मा जीवों के संहनन संस्थान मादि इतने प्रिय होते हैं कि उन्हें छाती से चिपटाने की लालसा होती है। (विद्यानन्द)
SR No.010223
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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