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( १५२) जा सकता है नत्र =॥ या वर्ष की उमर में भावपूर्वक विवाह क्यों न माना जाये ? (श्रीलाल)। ___ समाधान~इसमे मालूम होता है कि श्राक्षेपक पाठ वर्ष से कम उमर के विवाह को अवश्य ही नाजायज़ समझता है । वैर, अब हम पूछते हैं कि जब आठ वर्ष में व्रत ग्रहण किया जा सकता है तब आक्षेपक के मनगढन्त शास्त्रकारों ने विवाह के लिये बारह वर्ष की उमर क्यों रक्ली ? अाठ वर्ष की क्यों नहीं रखी ? इससे मालूम होता है कि साधारण व्रत ग्रहण करने की अपेक्षा वैवाहिक व्रत ग्रहण करने में विशेष योग्यता की आवश्यकता है । अर्थात परिपुष्ट शरीर, गार्हस्थ्य जीवन के भार सम्हालने की योग्यता और हृदय में उठती हुई वह कामवासना जिसके नियमित करने के लिये विवाह श्रावश्यक है, अवश्य होना चाहिये। अगर किसी अमाधारण व्यक्ति में पाठवर्ष की उमर में ही ये बातें पाई जाँय तो वह बालविवाह न कहलायगा, और इन बातों के न होने पर कितनी भी उमर में वह विवाह हो, वह नाजायज़ कहलायगा । भले ही तुम्हारे मनगढन्त शास्त्रकार १२ वर्ष का राग अलापते रहे।
एक बात यह भी है कि शास्त्रों में आठ वर्ष की उमर में व्रत ग्रहण करने की योग्यता का निर्देश है । परन्तु इसका यह मतलब नहीं है कि प्रत्येक पाठ वर्ष का वास्तक, मुनि या श्रावक के वन ग्रहण कर सकता है. या आठ वर्ष से अधिक उमर में व्रत ग्रहण करने वाला मनुष्य पापी हो जायगा। श्राठ वर्ष की उमर में केवलज्ञान तक बतलाया है परन्तु क्या इसी लिए इराक श्रादमी का इस उमर में केवलज्ञानीत्व मनाया जाने लगे ? कहा जायगा कि अली उमर हो जाने से क्या होता है ? अन्य अन्तरङ्ग बहिरङ्ग निमित्त तो मिलना चाहिये । बस : विवाह के विषय में भी हमाग यही कहना