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________________ ( १४४ ) नहीं है फिर भी वह विवाह है। इस दोष का निवारण श्राक्षंएक न कर सका तो कहता है कि यह ब्राह्मविवाह का प्रकरण है । परन्तु हमारा कहना यह है कि ब्राह्मविवाह के अतिरिक्त बाकी विवाह, श्रक्षेपक के मतानुसार विवाह हैं कि नहीं ? यदि a fear हैं और उनमें किसी खास विधिकी आवश्यकता नही हैं तो हमारा यह वक्तव्य सिद्ध हो जाता है कि विवाह में किसी खास विधि की आवश्यकता नहीं है। आक्षेप (ङ) छोटी आयुवाली विवाहिता स्त्री से उत्पन्न सन्तान को कर्ण के समान कहना उन्मत्त प्रलाप है । ( श्रीलाल ) समाधान-न्यायशास्त्र की वर्णमाला से शुन्य आक्षेपक को यहाँ समानता नहीं दीखती । यह उसकी मूर्खता के ही अनुरूप है । कर्ण के जन्म में यदि कोई दोष था तो यही कि वे श्रविवाहिता की सन्तान थे । बालविवाह जब विवाह ही नहीं है तब उससे पैदा होने वाली सन्तान अविवाहिता की सन्तान कहलाई इसमें विषमता क्या है ? आक्षेप (च ) - दुधमुहे का अर्थ विवाह के विषय में नासमझ करने से तो शङ्कराचार्य भी दुधमुँ है कहलाये क्योंकि इसी चर्चा के मण्डन मिश्र की स्त्री से हारे थे। अगर तत्का लीन समाज उनका विवाह कर देता तो आपकी नज़र में नाजा यज़ होता । ( विद्यानन्द ) समाधान- -अगर शङ्कराचार्य विवाह के विषय में कुछ नहीं जानते थे तो उनका विवाह हो ही नहीं सकता था । समाज ज़बर्दस्ती उनका विवाह कराने की चेष्टा करती तो वह विवाह तो नाजायज़ होता ही, साथ ही समाज को भी पाप लगता । विवाह के विषय में शङ्कराचार्य को दुधमुहा कहना अनुचित नहीं है। न्यायशास्त्र में 'बालानाम् बांधाय को टीका
SR No.010223
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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