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प्रश्न (E)-व्यभिचार से किन २ प्रकृतियां का बन्ध होता है और विधवा-विवाह से किन किन प्रकृतियों का बन्ध होता है ?
उत्तर-~व्यभिचार से चारित्र माहनीय का नीव बन्ध हाना है और विधवाविवाह से कुमागविवाह के ममान चारित्र मोह का अल्प बन्ध होना है। व्यभिचार सं पुगयबन्ध नहीं होता, परन्तु विधवाविवाह से पुरायबन्ध होता है। और वर्त. मान परिस्थिति में तो कुमारी विवाह से भी अधिक पुगयवन्ध विधवाविवाह से होता है, क्योंकि वर्तमान में जो विधवा विवाह करता है वह भ्रणहत्या और व्यभिचार आदि को रोकने की कोशिश करता है, स्त्रियों के मनुष्यांचित अधिकार दिलाता है । इस प्रकार के करुणा तथा परोपकार के भावोस उसे तीव्र पुगय का बन्य होता है, जो कि व्यभिचारी के और विधवाविवाह के विरोधियों के नहीं हो सकता। विधवाविवाह से दर्शनमोह का बन्ध नहीं हो सकता, क्योंकि विधवाविवाह धर्मानुकूल है । विधवाविवाह में योग देने वाला धर्म के मर्म को जान जाता है, स्याद्वाद के रहस्य से परिचित हो जाता है। यही तो सम्यक्य के चिन्ह है। विधवा विवाह के विरोधी एकान्तमिथ्यात्वी हैं, वे श्रृत और धर्म का अवर्णवाद करते हैं इसलिये उन्हें तीव्र मिथ्यात्व का बन्ध होता है । अन्य पाप प्रकृतियों का तो कहना ही क्या है ?
प्रश्न (6)-विवाह के बिना, काम लालसा के कारण जो संक्लेश परिणाम होते हैं, उनमें विवाह होने से कुछ न्युनता आती है या नहीं?