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इसका कारण यह है कि वे संध्या को ही लोटे दो लोटे पानी गटक जाया करते हैं । खैर ! विधवा होने से जिनकी काम
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वासना नष्ट हो जावे उनसे विवाह का अनुरोध नहीं किया जाता परन्तु जो कामवासना पर विजय प्राप्त नहीं कर सकती है उन्हें अवश्य ही विवाह कर लेना चाहिये ।
श्राप ( ग ) - काम शान्ति को विवाह का मुख्य उद्देश्य बताना मुर्खता है । शुद्ध सन्तानोत्पत्ति व गृहस्थ धर्म का दानादिकार्य यही मुख्य उद्देश्य है ।श्रतएव काम गौरा है, मुख्य धर्म ही है । (श्रीलाल )
समाधान -- श्रक्षेपक यहाँ इतना पागल होगया है कि उसे काम में और कामवासना की निवृत्ति में कुछ अन्तर ही नहीं मालूम होता । हमने कामवासना की निवृत्ति को मुख्यफल कहा है न कि काम को और कामवासना की निवृत्तिको धर्मरूप कहा है । धर्म श्रगर मुख्य फल हे तो कामवासना की निवृत्ति ही मुख्य फल कहलायी। इसमें विरोध क्या है ? पुत्रात्पत्ति आदि को मुख्यफल कहने के पहिले आक्षेपक गर हमारे इन शब्दों पर ध्यान देता तो उसे इस तरह निरर्गल प्रलाप न करना पड़ता
" मान लीजिये कि किसी मनुष्य में मुनिवृत धारण करने की पूर्ण योग्यता है । ऐसी हालत में अगर वह किसी श्राचार्य के पास जावे तो वे उसे मुनि बनने की सलाह देंगे या श्रावक बन कर पुत्रोत्पत्ति की सलाह देंगे” ?
यह कह कर हमने अमृतचन्द्र श्राचार्य के तीन श्लोक उद्धृत करके बतलाया था कि ऐसी अवस्था में श्राचार्य मुनि · व्रत का ही उपदेश देंगे । मुनिवृत धारण करने से बच्चे पैदा नहीं हो सकते, परन्तु कामलालसा की पूर्ण निवृत्ति होती है । इससे मालूम होता है कि जैनधर्म बच्चे पैदा करने पर ज़ोर नहीं