________________
तो कुमारी विवाह के बाद और मनिवेष लेने के बाद भी होता है । हमारे इस वक्तव्य के ऊपर आक्षेपक ने ऊपर का (ऊ) बेहूदा और अप्रासनिक आक्षेप किया है । खैर, उसपर हमाग कहना है कि स्त्री तो यही चाहती है कि एक हो पति के साथ जीवन व्यतीत हो जाय । परन्तु जब वह मर जाता है तो विवश होकर उसे दूसरे विवाह के लिये तैयार होना पड़ता है । विवाह के समय वह बिचारी क्या बतलाए कि कितने पुरुषों से तृप्ति होगी ? वह तो एक ही पुरुष चाहती है । हाँ, यह प्रश्न तो उन निर्लजों से पूछा, जो कि एक तरफ तो विधवाविवाह का विरोध करते हैं और दूसरी तरफ जब पहिली स्त्रीको जलाने के लिये मरघट में जाते हैं तो वहीं दूसरे विवाह की चर्चा करने लगते हैं और इसी तरह चार चार पाँच पाँच स्त्रियाँ हडप करके कन्याकुरंगी केसरी की उपाधि प्राप्त करते हैं। अथवा उन धृष्टयों से पूछी जो विधवाविवाहवालों का बहिष्कार करने के लिये तो बड़ा गर्जन तर्जन करते हैं, परन्तु खुद एक स्त्री के रखते हुए भी दूसरी स्त्री का हाथ पकड़ने में लज्जित नहीं होते । देव को सतायी हुई विचारी विधवा से क्या पूछते हो ? शराबियों को भी मात करने वाली अम्मभ्यता और कसाइयों को भी मात करने वाली करता के बल पर बिचारी विधवाओं का हृदय क्यों जलाते हो।
चौथा प्रश्न चौथे प्रश्न के उत्तर में तो दोनों ही आक्षेपक बहुत बुर्ग तरह से लड़खड़ाते हैं । इस प्रश्न के उत्तर में हमने कहा था कि परस्त्रीसेवन, वेश्यासेवन और बिना विवाह के पत्नी बना लेना, ये व्यभिचार की तीन श्रेणियाँ हैं। विधवाविवाह किसी में भी शामिल नहीं हो सकता। कुमारी भी परस्त्री है, लेकिन