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________________ ( ६२ ) भी दोषी कहलाया । वास्तविक बात तो यह है कि न विधुर विवाह में ज्यादः ममन्य परिणाम हैं और न विधवाविवाह में। हाँ, अगर कोई स्त्री एक ही समय में दो पति रक्खे अथवा कोई पुरुष एक ही समय में दो स्त्रियाँ रखे तो ममत्व परिणाम (गग परिगति ) ज़्यादः कहलायगा। अगर किसी ने यह प्रतिक्षा ली कि मैं २०० रुपये से ज्यादः न रक्खंगा और अब यदि वह २०१) रक्खे तो उस की गगपरिणति में वृद्धि मानी जायगी । लेकिन अगर वह २००) में से एक रुपया खर्च कर फिर दुसरा एक रुपया पैदा करके २०० ) करले तो यह नहीं कहा जायगा कि तू दूसग नया रुपया लाया है, इसलिये तेरी प्रतिक्षा भङ्ग हो गई और ममत्व परिणाम बढ़ गया। किसी ने एक घोड़ा रखने की प्रतिज्ञा ली, दुर्भाग्य से वह मर गया: इसलिये उसने दुसरा घोड़ा खरीदा । यहाँ पर भी वह प्रतिज्ञा. च्युत या अधिक गगी ( परिग्रही ) नहीं कहा जा सकता। इसी प्रकार एक पति के मर जाने पर दसग विवाह करना, या एक पत्नी के मरजाने पर दूसग विवाह करना अधिक गग ( परिग्रह ) नहीं कहा जा सकता। हाँ, पति के या पत्नी के जीवित रहते दूसग विवाह करना, अवश्य ही अधिक रागी होना है। परन्तु पण्डितों के अंधेर नगरी के न्याया. नुसार पुरुष तो एक साथ हज़ारो स्त्रियों के रखने पर भी अधिक परिग्रही नहीं हैं और स्त्री, एक पति के मर जाने पर दूसग विवाह करने से ही, असंख्यात गुणी परिग्रहशालिनी हैं ! कैसा अद्भुत न्याय है ? विधवाविवाह में प्रारम्भ कम है, परन्तु इसका कारण गुगडो का तमाशा नहीं है। तमाशे के लिये तो ज्यादः प्रारम्भ की ज़रूरत है। विधवाविवाह तमाशा नहीं है इसलिये प्रारम्भ कम है। असली बात तो यह है कि विधवाविवाह में शामिल
SR No.010223
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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