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[मोटे टाइप में छापते हैं। इस बात में प्राक्षेपक को छल खोफ प्रादि अनेक भूत नज़र आ रहे है । यह पागलपन नहीं तो क्या है ? बेचाग आक्षेपक ऐसे ऐसे ज़बरदस्त (?) नर्क (!) शस्त्रों से विधवाविवाह का खण्डन करने चला है।
कन्या शब्दके विषय में इतना लिखा जाचुका है कि अब और लिखने की ज़रूरत नहीं है। सागारधर्मामृत के निर्दोषा विशेषण पर जो श्रापक ने लिखा है उसका समाधान "ग" में किया गया है।
आक्षेप (द)-शायद सत्यमाचा को करुणानुयोग का लक्षण भी नहीं मालूम है । कही करुणानुयोग में गृहस्थ-चारित्र की प्राज्ञाएँ भी देखने में आई है। करुणानुयांग में तो लोकालोक विभाग आदि का वर्णन रहता है । करुणानुयोग और श्राक्षा का क्या सम्बन्ध?
समाधान-इस आक्षेप से मालूम होता है कि प्राक्षेपक का शास्त्रज्ञान अधूरा और तुच्छ है। पाठशालाओं के छोटे २ बच्चे जितना ज्ञान रखते है उतना ज्ञान बेचारे श्राक्षपकको मिला है और उसी के बल पर वह अपने को सर्वश समझता है ! आक्षेपक को हम सलाह देते है कि वह मोक्षमार्गप्रकाश के पाठ अधिकार में करुणानुयांग का प्रयोजन" और "करुणा नयोग के व्याख्यान की पद्धति' नामक विवंचनों का स्वाध्याय कर जाय । वहाँ के कुछ उद्धरण हम यहाँ नीचे देते हैं :
"यहरि करुणानुयोग विषे जीवनि की वा कर्मनि की विशेषता वा त्रिलोकादि की रचना निरूपण करि जीवन को धर्मविर्षे लगाये हैं। जे जीव धर्मविष उपयोग लगाया चाहते जीवनि का गणम्यान मार्गणा आदि विशेष अर कर्मनि का कारण अवस्था फल कौन कौन के कैसे केस पाइये, इत्यादि