________________
क्योंकि स्वर्ग को गो कहते हैं और गो का अर्थ गाय है । जिस प्रकार गो शब्द के 'गाय' और 'स्वर्ग' ये दोनों अर्थ होने पर भी 'गाय' को म्वर्ग नहीं कह सकते उसी प्रकार पुनर्भु शब्द के 'याग विवाह कराने वाली' और 'व्यभिचारिणी' ये दोनों अर्थ होने पर भी दुबाग विवाह करने वाली को व्यभिचारिणी नहीं कह सकते । दो ग्रन्थकाग की दृष्टि में पुनर्भू शब्द के ये जुद जुदं अर्थ है। इन जुदं जुदे अर्थों को पर्यायवाची समझ जाना अक्ल की ख़बी है । हाँ. अगर अमर कोष में लिखा हुआ पुनभू शब्द का अर्थ नाममाला में होता और फिर वहाँ उसे व्यभिचारिणी का पर्यायवाची बनलाया होता तो धनञ्जय के मत से पुनर्विवाह व्यभिचार सिद्ध होता । अथवा अमरकोशकार ने ही अगर पुनभू शब्द को व्यभिचारिणी शब्द का पर्याय. वाची लिखा होता तो भी पुनर्विवाह को व्यभिचार कहने की गुंजाइश होती। परन्तु न तो अमरकोशकार पुनभू को व्य. भिचारिणी लिखते है, न नाममालाकार अमरकोश सरीखा पुनर्भू का अर्थ ही करते हैं । इसलिये पुनभू शब्द के विषय में दोनों लेखकों के जुदे जुदं अर्थ ही समझना चाहिये।
दुसरी बात यह है कि 'पुनर्भ' तीन तरह की होतो है१. अक्षतयानि,२. नतानि, ३. व्यभिचारिणी (दखा मिनाक्षरा शब्द कल्पद्रम. या हिन्दी शब्दमागर )। हो सकता हेकि धन अय कवि ने तीसरे भेद को ध्यान में रख कर पुन को व्यभिचारिणी का पर्यायवाची लिखा हो । इस प्रकार छोटी छोटी ग़लनियाँ नाममाला में बहुत पाई जाती है। जैसे-धानु. किका अर्थ है धनुष चलाने वाला, परन्तु नाममालामें धानुष्क को भील का पर्यायवाची शब्द लिखा है। लेकिन न तो सभी भील, धानुष्क हो सकते हैं और न सभी धनुष चलाने वाले भील हो सकते है। अगर नाममालाकार के अर्थ के अनुसार