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( ४५ ) उपयोग करना उचित है । 'टट्टी पेशाब की निगरानी रखने वाला विधवाविवाह का समर्थन नहीं कर सकता'-यह तो बिलकुल हास्यास्पद युक्ति है। आज भी दक्षिण प्रान्त में टट्टी पेशाब तथा अन्य क्रिया-कांड पर उत्तर प्रान्त की अपेक्षा कई गुणी निगरानी रखी जाती है। फिर भी वहाँ विधवाविवाह
और तलाक का श्राम रिवाज है । खैर, त्रिवर्णाचारमें विधवा. विवाह का विधान है, यह बात २७ वे प्रश्न के उत्तर में सिद्ध की गई हैं। उम्मी प्रश्न आक्षेप समाधानों में इस पर विचार किया जायगा। ___ आक्षेप ( ण)-कन्या शब्द का अर्थ "विवाह योग्य स्त्री" क्यों किया जाय ? पिता शब्द का अर्थ ना 'गुरुजन' होता है जैमा कि अमरकोप में लिखा है 'म्यानिषेकादिकृद्गुरुः'; पर. न्तु कुमारी के अतिरिक्त कन्या शब्द का प्रयोग न तो हमारे कहीं देखन में पाया है न सुना ही हैं। धनञ्जय नाममाला में 'कन्या पनिर्वरः' लिखा है; स्त्री पनिर्वगः' क्या नहीं?
ममाधान-कन्या शब्द का 'विवाह योग्य स्त्री' अर्थ क्यों किया जाय, इस का समाधान आक्षेप 'ओ' के समाधान में देखिये । कन्या शब्द का कुमारी के अतिरिक्त अर्थ श्राप ने नहीं देखा सुना तो इस में हमाग क्या अपराध है ? यह श्राप के ज्ञान की कमी है । श्राप के सहयोगी १० श्रीलास्त जी ने तो यह अर्थ देखा है । उन के कथनानुमार ही श्राप विश्ललोचन, हेम और मेदिनी कोष देख डालिये। परन्तु इसके पहिले काप देखने की कला सीख लीजिये, क्योंकि इसी प्रकरण में अमरकोष देखने में श्राप ने बड़ी गलती की है। अमरकोष में लिखा है कि 'पित्रादिगुरुः' अर्थात् पिता, माता, भ्राता, मामा श्रादि गुरु है; परन्तु श्राप अर्थ करते है कि पिता माता, भ्राता आदि पिता है। आप को समझना चाहिये कि