________________
( ३६ )
संवेग अनुकम्पा श्रास्तिक्य गुण ज़रूर प्रकट होने चाहियें । निश्चय और व्यवहार दोनों का ख़याल रखना चाहिये । व्यवहार, निश्चयका निमित्त कारण नहीं - उपादान कारण है ।
T
समाधान - सम्यग्दृष्टिमें प्रशम सम्वेगादि होना चाहिये तो है । सम्यग्दृष्टिविधवाविवाह करते हुए भी प्रशम सम्वेग अनुकम्पा श्रनिक्यादि गुण रख सकता है । प्रशम से गग, द्वेष कम हो जाते हैं, सम्वेग से संसार से भय हो जाता 1 इतने परभी वह हज़ारों म्लेच्छ कन्याश्रमं विवाह कर सकता है, बड़े २ युद्धकर सकता है और सरक में हो तो परम कृष्णा लेश्या वाला रौद्रपरिणामी बनकर हज़ारों नारकियोंसे लड़सकता है ! तब भी उस के सम्यक्त्वका नाश नहीं होता। उसके प्रशम संवगादि बन सकते हैं, तो विधवाविवाह वाले के क्यों नहीं बन सकते ? व्यवहार निश्चय का कारण है । परन्तु विधवाविवाह भी तो व्यवहार है । जिस प्रकार कुमारी विवाह धर्म से दृढ़ रहने का कारण है उसी प्रकार विधवाविवाह भी है। व्यवहार तो द्रव्य क्षेत्र काल भाव के भेद से अनेक भेद रूप है । व्यवहार के एक भेद से उसी के दूसरे भेद की जाँच करना व्यव हारैकान्तवादी बन जाना है । निश्चय की कसौटी बना कर व्यवहार की परीक्षा करना चाहिये। जो व्यवहार निश्चय अनुकूल हो वह व्यवहार है, जो प्रतिकूल हो वह व्यवहाराभास है । विधवा विवाह निश्चय सम्यक्त्व के अनुकूल अथवा श्रविरुद्ध है । इसलिये वह सच्चा व्यवहार है । व्यवहार सम्यक्त्व के अन्य चिन्हों के साथ भी उस का कोई विरोध नहीं है।
1
व्यवहार को निश्चय का उपादान कारण कहना कार्य कारण भाव के ज्ञान की दिवाला निकाल देना है | व्यवहार पराश्रित है और निश्चय स्वाश्रित । क्या पराश्रित, स्वाधिन का उपादान हो सकता है ? यदि व्यवहार निश्चय का उपादान