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________________ ( २८ ) इतना तूफान मचाना किस काम का ? यदि अनमेल आदि विवाह धर्मविरुद्ध नहीं है तो विधवाविवाह भी धर्मविरुद्ध नहीं है । इसलिये जिस प्रकार 'निर्दोष' विशेषण सदोषा के विवाह को धर्मविरुद्ध नहीं ठहरा सकता, उसी प्रकार 'कन्या' विशेषण विधवा के विवाह को धर्मविरुद्ध नहीं ठहरा सकता। इसके लिये हमने पहिले लेख में खुलासा कर दिया है कि 'कन्या और विधवा में करुणानुयोग की दृष्टि में कुछ अन्तर नहीं है जिससे कन्या और विधवा में जुदी जुदी दो श्राक्षाएँ बनाई जायँ'। इस अनुयोग सम्बन्धी प्रश्न का श्राप कुछ उत्तर नहीं दे सके। आक्षेप (घ)-जैन सिद्धान्त में कन्या का विवाह होता है, यह स्पष्ट लिखा है । विधवा को आर्यिका होने का या वैधव्य दीक्षा धारण करने का स्पष्ट विधान है। इसलिये विधवाविवाह का विधान व्यभिचार को पुष्टि है। समाधान-कन्या शब्द का अर्थ विवाह कराने वाली स्त्री' या 'दुल्हिन' है (स्त्री सामान्य आपने भी माना है। )। दुल्हिन कुमारी भी हो सकती है और विधवा भी हो सकती है, इसलिये जैन सिद्धान्त को प्राशासे विधवाविवाह का कुछ विरोध नहीं । शास्त्रों में तो अनेक तरह की दीक्षाओं के विधान है, परन्त जो लोग दोक्षा ग्रहण नहीं करते. वे धर्मभ्रष्ट नहीं कहलाते । जिनमें विरक्ति के भाव पैदा हुए हों, कषायें शांत होगई हो, वे कभी भी दीक्षा ले सकती हैं। परन्तु जब विरक्ति नहीं हे, कषाये शान्त नहीं है, तब ज़बर्दम्ती उनसे दीक्षा नहीं लिवाई जा सकती । 'ज्यों ज्यों उपशमत कषाया, त्यो त्यो तिन त्याग बताया' का सिद्धान्त आपको ध्यान में रखना चाहिये। इल विषय को प्रायः सभी बाते पहिले कही जा चुकी हैं। आक्षेप (ङ)-प्रबोधसार में लिखा है कि 'कन्या का
SR No.010223
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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