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90 / जैन धर्म और दर्शन
एक बार कहा गया है। स्थूल और सूक्ष्म में जो पहले कहा गया है उसकी अधिकता है तथा बाद वाले को न्यूनता है। स्थूल सूक्ष्म रूप प्रकाशादि में स्थूलता अधिक है तथा सूक्ष्मता कम। सूक्ष्म-स्थूल शब्दादि में सूक्ष्मता अधिक है स्थूलता कम। अंग्रेजी के Positive Degree,Comparative Degree, Superlative Degree की तरह इन छह भेदों को क्रमश: स्थूलतम,स्थूलतर, स्थूल, सूक्ष्म, सूक्ष्मतर,सूक्ष्मतम रूप से भी कह सकते हैं।
स्कंधोत्पत्ति : पुद्गल परमाणुओं के पिण्ड रूप स्कंधों की उत्पत्ति तीन प्रकार से होती है। भेद से अर्थात् एक दूसरे से बिछुड़कर विघटित होकर, संघात से अर्थात् एक दूसरे से जुड़कर संयोजित होकर तथा भेद संघात से अर्थात् बिछुड़कर और जुड़कर।
1. भेद से : भेद का अर्थ होता है—टूटना, बिछुड़ना। जैसे ईंट, पत्थर आदि को तोड़ने से उनके दो या अधिक टुकड़े हो जाते हैं वैसे ही अनेक पुद्गलों के पिण्ड रूप किसी बड़े स्कंध के टूटने से उत्पन्न स्कंधों को 'भेद-जन्य स्कंध' कहते हैं।
2. संघात से : 'संघात' का अर्थ होता है—'जुड़ना' । दो या अधिक परमाणु और स्कंधों के परस्पर जुड़ने से उत्पन्न स्कंध संघात-जन्य स्कंध' कहते हैं।
3. भेद-संघात से : अर्थात् टूटकर और जुड़कर । एक ही साथ किसी स्कंध से टूटकर अन्य स्कंधों से जुड़ने से उत्पन्न भेद-संघातजन्य-स्कंध' कहलाते हैं । (जैसे टायर के छिद्र से निकलती हई वाय उसी क्षण बाहर की वाय में मिल जाती है। यहां एक ही समय में भेद-संघात दोनों हैं । बाहर से निकलने वाली वायु का टायर के भीतर की वायु से 'भेद' है,तथा बाहर की वायु से 'संघात)। तीनों प्रकार के स्कंध दो को आदि लेकर संख्यात, असंख्यात और अनंत अणु वाले रह सकते हैं । परमाणु की उत्पत्ति स्कंधों के विघटन अर्थात् भेद से ही होती है।
स्कंधोत्पत्ति का कारण पुद्गल परमाणुओं में स्वभाव से स्निग्धता और रूक्षता होती है जिनके कारण इनका परस्पर बंध होता है। परिणमनशील पुद्गलों के इस स्निग्ध और रूक्षत्व गुण के कारण ऐसा रासायनिक परिणमन होता है कि वे परस्पर मिलकर एक रूप हो जाते हैं। इसी से स्कंधों की उत्पत्ति होती है। इन्हें शक्त्यंश कहते हैं। स्निग्ध का अर्थ धन विद्यत धर्मिता तथा रूक्ष का अर्थ ऋण विद्युता धर्मिता है)। इसी स्निग्ध और रूक्ष शक्ति के कारण पुद्गल परमाणु परस्पर में बंधते रहते हैं। उसमें भी शर्त यह है कि जघन्य अर्थात् एक शक्त्यंश वाले परमाणु का किसी से भी बंधन नहीं होता। स्निग्ध, स्निग्ध-स्निग्ध,रूक्ष तथा रूक्ष-रूक्ष एवं रूक्ष-स्निग्ध परमाणुओं का बंध तभी संभव है जब इनमें से किसी एक में दो गुण की
धिकता हो, इससे हीन या अधिक नहीं।' परस्पर समान शक्त्यशों के होने पर भी इनका बंध नहीं होता। समझने के लिए, दो गुण वाले परमाणुओं का सदृश या विसदृश चार गुण
1. त. सू.5/26 2. त सू.5/33 3. त. सू.5/34 4. त. सू.5/36 5. तसू.5/35