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54 / जैन धर्म और दर्शन
निर्जरा से सचित कर्म विनष्ट होते हैं।
इस प्रकार उक्त सात बातों के माध्यम से जैनाचार्यों ने मनुष्य के मन में उठने वाली सभी तात्विक जिज्ञासाओं का समाधान किया है और इसीलिए सत्यान्वेषक मुमुक्षु जनों के लिए उसका अध्ययन/अवलोकन आवश्यक हो जाता है। मोक्ष मार्ग में रत साधक को इन मात बातों का ध्यान/श्रद्धान रखना अनिवार्य है। इसके बिना वह यथार्थ साधना नही कर सकता। इसके लिए रोगी का उदाहरण दिया गया है
जैसे कोई व्यक्ति रोगी है तो उसे रोग और रोग के कारणों पर विचार करने के साथ-साथ रोगोपचार और उसके साधनों को अपनाना भी अनिवार्य है। कोई भी रोगी तभी रोगमुक्त हो सकता है जबकि उसे इन बातों का ध्यान रहे कि -1 मैं स्वभावत निरोगी हू, 2 मै वर्तमान में रोगी हू 3 रोग का कारण क्या है ? 4 रोग बढता कैसे है? 5 रोग से बचने के उपाय क्या हैं? 6 रोग का इलाज क्या है ? तथा 7 आरोग्य का स्वरूप क्या है। इन बातों पर विचार करने पर ही वह आरोग्य का अनुभव कर सकता है। यदि व्यक्ति अपने रोग का उपचार करता रहे पर उसे यही पता न हो कि उसका रोग क्या है ? उसका स्वरूप कैसा है। वह क्यों बढता है और कैसे घटता है। यदि कुछ नही जानता तो वह अपना रोग कभी भी नही मिटा सकता।
तत्व के भेद जिस प्रकार रोग मे मुक्ति के लिए रोग और रोग के कारण पर विचार करना आवश्यक है, उसी प्रकार दुखो से मुक्ति के लिए भी दुख और उसके कारणों पर विचार करना अनिवार्य है। यह बताते हुए जैनाचार्यों ने कहा है कि यह जानना बडा जरूरी है कि-1 दुख किसे मिल रहा है? 2 दुख किससे मिल रहा है? 3 दुख का कारण क्या है ? 4 दुःख बढता कैसे है? 5 दुख को रोका कैसे जाये? 6 दुख दूर कैसे हो? 7 तथा दुख से मुक्त अवस्था कैसी है ? इन्हें ही जैन दर्शन में तत्त्व कहा गया है। वे है-जीव, अजीव, आस्रव, बध, सवर, निर्जरा और मोक्ष ।
इनमें 'जीव' चेतनावान पदार्थ है। वह 'अजीव' जड पुद्गलों के ससर्ग से ससार में दुखी हो रहा है। 'आस्रव' वह दरवाजा है जिससे जड कर्म आत्मा में प्रवेश करते हैं। जीव
और कर्म का एकमेक हो जाना 'बध' है । समस्त दुखों का मूल कारण आस्रव और बध ही है। आस्रव को रोकने का नाम 'सवर' है। कर्मों के झड़ने को 'निर्जरा' कहते हैं, तथा सपूर्ण कर्मों का आत्यन्तिक क्षय मोक्ष है । यह जीव की स्वाभाविक अवस्था है।
इन सात तत्वों में जीव और अजीव का मेल ही यह ससार है। आस्रव और बध ससार के कारण हैं । मोक्ष ससारातीत अवस्था है । सवर और निर्जरा उसके साधन हैं।
तत्त्व का अर्थ ये सात बातें ऐसी हैं जिनकी श्रद्धा और ज्ञान होने पर ही हमारा कल्याण सभव है। इसलिए
1 सर्वा सि.
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