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38 / जैन धर्म और दर्शन
प्राचीन धर्म है जिसने भारतीय संस्कृति को बहुत कुछ दिया।'
अन्य तीर्थंकर पूर्व कथित प्रमाणों एवं उपरोक्त विद्वानों के निष्पक्ष सम्मतियों के आधार पर भगवान ऋषभदेव की ऐतिहासिकता में किसी भी प्रकार का संदेह नहीं रह जाता । ऋषभदेव जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर थे। इनके बाद क्रमशः तेईस तीर्थंकर और हुए, जिनका जीवन चरित्र जैन पुराण, ग्रंथों में सविस्तार मिलता है। इसके अतिरिक्त मथुरा के कंकाली टीला एवं अन्य स्थानों से प्राप्त ईस्वी सन् से शताब्दियों पूर्व की निर्मित प्रतिमाओं से भी शेष तीर्थंकरों का ऐतिहासिक अस्तित्व प्रमाणित होता है।
तीर्थंकर नेमिनाथ इनमें बाइसवें तीर्थंकर भगवान नेमिनाथ जिन्हें अरिष्ट नेमि भी कहते हैं, की ऐतिहासिकता को विद्वानों ने स्वीकार किया है। वे नारायण श्री कृष्ण के चचेरे भाई थे। यजुर्वेद आदि ग्रंथों में भी अरिष्ट नेमि का उल्लेख हुआ है।
पुराणों से भी स्पष्ट है कि श्री कृष्ण के समकालीन एक अरिष्ट नेमि नामक ऋषि थे। महाभारत में भी उनका उल्लेख है।'
1. जैन धर्म पृ. 128 2. जैन स्तूप एंड अदर एण्टीक्वीटीज ऑफ मथुरा पृ. 24.25 3. Neminath is connected with the leyend of Shri Krishna as his realative .... The
Harivansa Puran Estabalishes the Historicity of Neminath. He was never a mythical person. He is refferred to as a Jina in the Prabhasas Purana. Who
obtained salvation on the M.T. Raivataka. -Dr B.C. Law Voa, S.P.No. Vol.V.P.48 4. एक समय था जब इतिहासज्ञ विद्वान् भगवान नेमिनाथ की ऐतिहासिकता में विश्वास नहीं रखते थे, किंतु
आधुनिक ऐतिहासिक खोजों के आधार पर अब विद्वान् यह मानने लगे हैं कि श्रीकृष्ण के समय नेमिनाथ जैसे कोई महापुरुष हुए हैं। प्रसिद्ध कोषकार डॉ. नागेंद्रनाथ वसु, पुरातत्वज्ञ, डॉ. फूहरर, प्रो. वारनेट, कर्नल टाड, मि कवा, डॉ. हरि सत्य भट्टाचार्य, डॉ. प्राणनाथ विद्यालकार, डॉ राधाकृष्णन आदि अनेक प्रौढ़ और प्रामाणिक विद्वान् तीर्थकर नेमिनाथ की ऐतिहासिकता को स्वीकार करने लगे हैं। स्वय ऋग्वेद, यजुर्वेद, अर्थववेद, सामवेद, ऐतेरेय ब्राह्मण, यास्कनिरुक्त, सर्वानुक्रमणिका टीका वेदार्थ दीपिका, सायण भाष्य, महाभारत, भागवत, स्कंद पुराण एव मार्कण्डेय पुराण आदि प्रसिद्ध ब्राह्मणीय ग्रथों में इनके उल्लेख मिलते हैं। इतना ही नहीं तीर्थकर नेमिनाथ का प्रभाव भारत के बाहर विदेशों में भी पहुंचा प्रतीत होता है। कर्नल टाड अपनी पुस्तक राजस्थान में लिखते हैं कि मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि प्राचीनकाल में चार बुद्ध या मेधावी महापुरुष हुए हैं। इनमें पहले आदिनाथ या ऋषभदेव थे। दूसरे नेमिनाथ थे। नेमिनाथ ही स्केण्डिनेविया निवासियों के प्रथम 'ओडिन' तथा चीनियों के प्रथम 'फो' नामक देवता थे। डॉ. प्राणनाथ विद्यालंकार ने इसके अतिरिक्त 19 मार्च 1935 के साप्ताहिक 'टाइम्स ऑफ इंडिया' में काठियावाड़ से प्राप्त एक प्राचीन ताम्र शासन प्रकाशित किया था। उनके अनुसार उक्त दानपत्र पर जो लेख अंकित था उसका भाव यह है कि 'सुमेर जाति में उत्पन्न बाबुल के खिल्दियन सम्राट नेवुचेदनज्जर ने जो रेवानगर (कठियाबाड़) का अधिपति है, यदुराज की इस भूमिद्वारका) में आकर रेवताचल (गिरिनार) के स्वामी नेमिनाथ की भक्ति की तथा उनकी सेवा में दान अर्पित किया।' दानपत्र पर उक्त पश्चिमी एशियाई नरेश की मुद्रा भी अंकित है और उसका काल ईसा पूर्व 1140 के लगभग अनुमान किया जाता है। -भारतीय इतिहास, एक दृष्टि पृ.45