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30 / जैन धर्म और दर्शन
कहना कठिन है कि इन समस्त ऋचाओं में प्रयुक्त वृषभ शब्द ऋषभदेव का ही वाची है, फिर भी कुछ ऋचाएं तो अवश्य ऋषभदेव से संबंधित ही मानी जा सकती हैं। डॉ. राधाकृष्णन, प्रो. जिम्मर, प्रो. विरूपाक्ष वार्डियर आदि कुछ जैनेतर विद्वान भी इस मत के प्रतिपादक हैं कि ऋग्वेद में जैनो के आदि तीर्थंकर ऋषभदेव से संबंधित निर्देश उपलब्ध होते हैं "1
पुराणों और स्मृतियों में ऋषभदेव
इस प्रकार वेदों में ऋषभदेव का उल्लेख तो मिलता ही है, श्रीमद्भागवत, मार्कण्डेय पुराण, कूर्मपुराण, वायु पुराण, अग्नि पुराण, ब्रह्मांड पुराण, बराह पुराण, विष्णु पुराण एवं स्कंध पुराण आदि में ऋषभदेव की स्तुति के साथ ही साथ उनके माता-पिता पुत्र आदि के नाम तथा जीवन की घटनाओं का भी सविस्तार वर्णन है । 2
श्रीमद्भागवत के प्रथम स्कंध अध्याय तीन में अवतारों का कथन करते हुए बताया गया है । " राजा नाभि की पत्नी मरूदेवी के गर्भ से ऋषभदेव के रूप में भगवान ने आठवां अवतार ग्रहण किया । इस संबंध में उन्होंने परमहंसों को वह मार्ग दिखाया जो सभी आश्रम वासियों के लिए वंदनीय है।” महाभारत शांतिपर्व में भी ऋषभदेव का उल्लेख है । ऐसा कहा जाता है कि अड़सठ तीर्थों की यात्रा करने से जो फल प्राप्त होता है उतना फल भगवान आदिनाथ के स्मरण मात्र से ही मिल जाता है
अष्टषष्टिषु तीर्थेषु यात्रायां यत्फलं भवेत् ।
श्री आदिनाथस्य देवस्य स्मरणेनापि तद्भवेत ॥
इस प्रकार वैदिक साहित्य के अनुशीलन से ऋषभदेव की ऐतिहासिकता के साथ-साथ जैन धर्म के प्रस्थापक के रूप में उनके महान व्यक्तित्व का भी पता चलता है ।
बौद्ध साहित्य
बौद्ध साहित्य में भी ऋषभदेव का उल्लेख मिलता है। धम्म पद में उन्हें 'प्रवर वीर' कहा है (उसभं पवरं वीरं-422 ) । मंजुश्री मूल कल्प में उनको निर्मन्थ तीर्थकर और आप्त देव के रूप में उल्लिखित किया गया है। 'न्याय विदु' अध्याय तीन में ऋषभ (वृषभ) और बर्द्धमान को सर्वज्ञ अर्थात् केवल ज्ञानी तीर्थकर लिखा है । 3 'धर्मोत्तर प्रदीप' पृष्ठ 286 में भी उनका स्मरण किया गया है। इस प्रकार ऋषभदेव का उल्लेख प्राचीन इतिहास जैन, वैदिक, बौद्ध तीनों साहित्यों में मिलता है ।
सिंधु घाटी और जैन धर्म
पुरातात्विक साक्ष्यों के आधार पर भी जैन धर्म की प्राचीनता सिद्ध होती है । इतिहासकारों और पुरातत्ववेत्ताओं की यह मान्यता है कि वैदिक आर्यों के आगमन से पूर्व भारत में जो
1. देखे श्रमण, अप्रैल- - जून 1994
2. विशेष के लिए देखे – ऋषभ सौरभ पृ 77
3. सर्वज्ञ आप्ति वा सज्योति ज्ञानादिक मुपदिष्टवान यथा वृषभ वर्धमानदिरिति — न्याय बिंदु अ 3