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आत्मविश्वास के क्रमोन्नत सोपान/207
गुण-स्थानों में आरोह-अवरोह का क्रम इस प्रकार इन चौदह गुण-स्थानों से होता हुआ जीव अपनी आत्मविकास की यात्रा को पूर्ण करता है। आत्मिक परिणति से जुड़े होने के कारण ये अत्यंत सूक्ष्म होते हैं। हम अपनी बुद्धि से इन गुण-स्थानों को पहचान नहीं सकते। इन्हें तो अपने अनुभव द्वारा ही जाना जा सकता है। इतना अवश्य है कि इन गुण-स्थानों के प्राप्त होने पर उक्त गुणस्थान कथित गुण हमारे आचरण में अवश्य आ जाते हैं। उन आचरणों के आधार पर ही गुण-स्थानों का अनुमान लगाया जा सकता है। हमारे भावों के उतार-चढ़ाव के अनुरूप इनमें क्षण-क्षण में परिवर्तन होते रहते हैं। इनमें आरोहण एवं अवरोहण का भी एक निश्चित क्रम है। आइए एक दृष्टि हम उन पर भी डालें :
क्रमांक गुणस्थानों के नाम
आरोहण
अवरोहण
3,4,5,7,
मिथ्यात्व सासादन सम्यक् -मिथ्या-दृष्टि अविरत सम्यक-दृष्टि संयतासंयत प्रमत्त-संयत अप्रमत्त-संयत अपूर्वकरण अनिवृत्तिकरण
3,2,1 4, 3, 2, 1 5,4,3, 2, 1 6,4 (मरण की अपेक्षा) 7.4 (-" -) 8, 4 (-"-) 9 (-"-)
सूक्ष्म साम्पराय
11 (उपशम श्रेणी) 12 (क्षणक श्रेणी)
13
उपशांत -मोह क्षीण-मोह सयोग-केवली अयोग केवली
14
मोक्ष
इस प्रकार जैन दृष्टि से आत्मविकास के क्रम का यह सामान्य दिग्दर्शन है। इसके विशेष परिज्ञान के लिये जैन कर्म साहित्य पढ़ना चाहिये।
. जेसि को 2247