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कर्म और उसके भेद-प्रभेद / 125
स्वरूप में स्थिरता रूप यथाख्यात चारित्र न हो, उसे 'संज्वलन' कषाय कहते हैं।
क्रोध चतुष्क : उक्त अनंतानुबंधी आदि कषायों की शक्ति में तरतमता है। इन्हें जैनाचार्यों ने विभिन्न उदाहरणों से स्पष्ट किया है। अनंतानुबंधी क्रोध को पर्वत की गहरी दरार की तरह कहा गया है, जो एक बार फटने के बाद पुनः नहीं मिलती। उसी प्रकार अनंतानुबंधी कषाय का संबंध भव-भवों तक नहीं छुटता। 'अप्रत्याख्यान' के क्रोध को भूमि की दरार की तरह कहा गया है । जैसे गर्मी के दिनों में सूखे तालाब आदि में मिट्टी के फट जाने से दरार पड़ जाती हैं, किंतु वर्षा होते ही वह दरार मिट जाती हैं, उसी प्रकार प्रत्याख्यान कषाय गुरुओं के उपदेशामृत की वर्षा से धीरे-धीरे शांत हो जाती है । यह अधिक से अधिक पंद्रह दिन तक अपना प्रभाव दिखाती है। संज्वलन क्रोध को 'जल की लकीर' की तरह कहा गया है। जैसे जल की लकीर खींचते ही मिट जाती है. वैसे ही यह कषाय उत्पन्न होते ही शांत हो जाती है । इसका वासनाकाल अंतर्मुहूर्त कहा गया है।
मान चतुष्क : इसी प्रकार अनंतानुबंधी आदि चारों प्रकार के मान को क्रमशः शैल, अस्थि, काष्ठ तथा बेल (लता) की उपमा दी गयी है। जैसे शैलादिकों में कड़ापन उत्तरो अल्प होता है, वैसे ही ये चारों कषाय उत्तरोत्तर मंद प्रभाव वाले हैं।
माया चतुष्क : अनंतानुबंधी आदि चारों प्रकार की माया क्रमशः बांस की गठीली जड़, भेड़ की सींग, गोमूत्र और खुरपे के सदृश कुटिल कही गयी है। इनका प्रभाव भी उत्तरोत्तर अल्प है।
लोभ चतुष्क : इसी तरह चारों प्रकार के लोभ को क्रमशः किरमिजी का दाग, पहिये का औंगन (अक्षनल), कीचड़ एवं हल्दी के रंग की तरह कहा गया है। अनंतानुबंधी किरमिजी के रंग के सदश है जोकि किसी भी उपाय से नहीं छुटता। अप्रत्याख्यानावरण गाड़ी के पहिये में लगने वाले (ओगन) मल की तरह है, जिसका दाग कठिनता से छूटता है। प्रत्याख्यानावरण लोभ कीचड़ या (देहमल) काजल की तरह है, जो अल्प परिश्रम से छूट जाता है। संज्वलन लोभ हल्दी के सदृश है, जो सहज ही छूट जाता है। उक्त चारों कषाएं क्रमशः नरक,तिर्यंच,मनुष्य एवं देव गति में उत्पत्ति के कारण हैं।
उपरोक्त सोलह कषायों की शक्ति को निम्न तालिका से स्पष्ट कर सकते हैंकषाय की अवस्था क्रोध
माया
लोभ फल अनंतानुबंधी शिलारेखा शैल बांस की जड़ किरमिजी नरक अप्रत्याख्यान पृथ्वी रेखा अस्थि भेड़ का सींग अक्षमल तिर्यंच प्रत्याख्यान धूली रेखा काष्ठ
गोमूत्र
कीचड़ मनुष्य संज्वलन जल रेखा लता/बेल खरपा
हल्दी देव नोकवाय वेदनीय : जिनका उदय कषायों के साथ होता है या जो कषायों से प्रेरित होती हैं, वे नोकषाय हैं। इन्हें अकषाय भी कहते हैं। नोकषाय या अकषाय का तात्पर्य
मान
1. वही। 2. प स प्रा. गा. 1/111 से 114 3. कषाय सह वर्तित्ववाद कवाय प्रेरणादपि ।
हास्यादि नव कवायस्योक्ता नोकषाय कवायता