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सम्यग्ज्ञान
वण पाच है
कृष्ण, नील, पीत, रक्त और श्वेत । गंध दो है
सुगन्ध और दुर्गन्ध रस पाच है
कटुक, कपाय, तिक्त, अम्ल, और मषुर । स्पर्ग पाठ है
कठिन, मृदु, गुरु, लघु, गीत, उष्ण, सूक्ष्म
और स्निग्ध । यह सब वीस पुद्गल के असाधारण गुण है, जो तारतम्य एव सम्मिश्रण के कारण सख्यात, असख्यात और अनन्त रूप ग्रहण करते है ।
शब्द, गंध, सूक्ष्मता, स्थूलता, आकृति, भेद, अधकार, छाया, चाँदनी और धूप पुद्गल के ही लक्षण है २ ।
पुद्गल के अवस्थाकृत चार भेद ३ है --स्कन्ध, देश, प्रदेश और परमाणु । सम्पूर्ण पुद्गल पिण्ड स्कन्ध कहलाता है। स्कन्ध का एक भाग देश कहलाता है । स्कन्ध और देश से जुडा हुआ अविभाज्य अश प्रदेश कहलाता है और वह प्रदेश जब स्कट या देश से पृथक् हो जाता है तब परमाणु कहलाता है। ___साधारणतया कोई स्कन्ध वादर, और कोई सूक्ष्म होते हैं। वादर स्कन्ध इन्द्रियगम्य, और सूक्ष्म इन्द्रिय अगम्य होते है ।
इन्हे छह भागो मे विभक्त किया गया है .-- १ बादर वादर स्कन्ध - जो टूट कर जुड न सके, लकड़ी पत्थर । २. वादर स्कन्ध - प्रवाही पुद्गल जो टूट कर जुड़ जाते है । ३ सूक्ष्म बादर - जो देखने मे स्थूल किन्तु अकाट्य हो, जैसे
- धूप, प्रकाश आदि। ४. बादर सूक्ष्म - सूक्ष्म होने पर भी इन्द्रियगम्य हो, जैसे रस,
गध, स्पर्श, आदि । ५ सूक्ष्म
इन्द्रियो से अगोचर स्कध, यथा-कर्मवर्गणादि ६ सूक्ष्मसूक्ष्म - अत्यन्त सूक्ष्म स्कन्ध, यथा-कर्मवर्गणा से
नीचे के द्वयणुक पर्यन्त पुद्गल । परमाणु, पुद्गल का वह सूक्ष्मतम भाग है, जो पुन विभक्त नही हो
१. भगवती सू० श० १२ उद्देशा ४, स० ४५० । २ उत्तराध्ययन, अ० २८, गाथा १२ । ३ प्रज्ञापना परिणाम पट, १३ सू० १८५। ४ अनुयोगद्वार