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जैन धर्म की परम्परा भारत के प्राध्यात्मिक निर्माण मे जैनाचार्यों का योगदान
भारत के मास्कृतिक निर्माण में जैनाचार्यों की कितनी महत्त्वपूर्ण देन है, इम सवध में अब तक कोई व्यवस्थित विचार नहीं किया गया है। किन्तु अमदिग्ध रूप में कहा जा सकता है कि जैनाचार्यों ने अपने उच्च कोटि के त्यागमय और मयमपूर्ण जीवन और उपढेगो मे भारत की सस्कृति को बहुत प्रभावित किया है। उनकी देन अनठी है। जब म पूर्व, दक्षिण और उत्तर के अन्तर्मानम का साक्षात्कार करना चाहेगे, नो हाँ चलचित्र की भॉति जैनाचार्यों की भव्य झांकियॉ दृष्टिगोचर होगी, जिनका प्रभाव अाज नक भारत की कला और जन-जन के मानस पर अक्षुण्ण एवं व्यापक रूप से पड़ा है।
भगवान् महावीर से १७० वर्ष बाद उत्पन्न होने वाले महान् प्राचार्य भद्रवाह को कौन भुला सकता है, जिन्होने अपने योगवल से भविष्य को जानकर मगव की जनता और मम्राट चन्द्रगुप्त को द्वादशवर्षीय दुर्भिक्ष का सकेत किया था। उन्ही के उपदेशो का फल था कि मम्राट् चन्द्रगुप्त उनके माथ दक्षिगयात्रा मे गया, भिक्ष बना, और अन्त मे जैनविधि के अनुसार समाधिमण करके कृतकृत्य हो गया।
प्राचार्य भद्रबाहु के दक्षिण प्रवाम के परिणाम बडे दूरगामी, स्थायी प्रभाव