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चारित्र और नीतिशास्त्र
१८७ को रस्सी से वाधे रखना, मान को पिटारे मे बन्द कर देना, एसा करने से उन प्राणिको की स्वाधीनता नष्ट हो जाती है और उन्हे व्यथा पहुचती है।
४ घोडे, बैल, खच्चर, गधे आदि जानवरो पर सामर्थ्य से अधिक बोझ लादना, नौकरो से अधिक काम लेना ।
५ अपने आश्रित प्राणियो को समय पर भोजन-पानी न देना तथा रात्रि भोजन आदि नमस्त दोषो का त्याग अहिसाणुव्रत की भावना मे आवश्यक है ।
२ सत्याणुव्रत-स्थूल असत्य बोलने का सर्वथा त्याग करना और सूक्ष्म असत्य के प्रति नावधान रहना द्वितीय व्रत है।
यद्यपि स्यूल और सूक्ष्म असत्य की कोई निश्चित परिभाषा देना कठिन है, तथापि जिस असत्य को दुनिया असत्य मानती है, जिस असत्य भाषण से मनुष्य झूठा कहलाता है, जो लोकनिन्दनीय और राजदण्डनीय है, वह असत्य स्थूल असत्य कहलाता है । श्रावक ऐसे स्थूल असत्य-भाषण का त्याग करता है।
झूठी साक्षी देना, झूठा दस्तावेज या लेख लिखना, किसी की गुप्त वात प्रकट करना, चुगली करना, सच्ची-झूठी कह कर किसी को गलत रास्ते पर ले जाना, यात्मप्रगसा और परनिन्दा करना आदि स्थूल मृषावाद मे सम्मिलित है । इस व्रत का भलीभाति पालन करने के लिए इन पाचो बातो से वचना चाहिए।' जैसे कि -
१. दूसरे पर मिथ्या दोषारोपण करना । २. किसी की गुप्त वात प्रकट करना। ३ पत्नी आदि के साथ विश्वास घात करना । ४ दूसरे को गलत मलाह देना। ५ जालसाज़ी करना, झूठे दस्तावेज आदि लिखना ।
३.अचौर्याणवत-मन, वाणी और शरीर से किसी की सम्पत्ति को बिना अाज्ञा न लेना अचौर्याणुव्रत कहते है । चोरी भी दो प्रकार की है स्थल चोरी, और मूक्ष्म चोरी। जिस चोरी के कारण मनुष्य चोर कहलाता है, न्यायालय से दण्डित होता है, और जो चोरी लोक में चोरी के नाम से विख्यात है, वह स्थूल चोरी है। रास्ते मे चलते-चलते तिनका या ककर उठा लेना या इसी प्रकार की कोई दूसरी वस्तु उसके स्वामी से आना प्राप्त किए विना ग्रहण कर लेना सूक्ष्म
१. उपासक दशांग, अ० १ ।