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कर्मबाट
१७३ फिर धीरे-धीरे निर्माण कार्य चलता रहता है। पर देवो और नारको के जन्म की प्रक्रिया कुछ भिन्न प्रकार की है जो अन्य ग्रन्थो से जानी जा सकती है।
जैनशास्त्रो के अनुसार जन्म तीन प्रकार के है-- १ गर्भ २ सम्मूछिम ३. उपपात ।
माता-पिता के रज-वीर्य के सम्मिश्रण के फलस्वरूप होने वाला जन्म गर्भजन्म है। इधर-उधर के पुद्गलो के सम्मिश्रण के फलस्वरूप होने वाला जन्म सम्मूछिम-जन्म कहलाता है। देव और नारक जीवो का जन्म उपपात जन्म कहलाता है।
जरायुज, अर्थात् पतली-सी झिल्ली मे लिपटे हुए जन्म लेने वाले मनुष्य आदि । अण्डे से जन्म लेने वाले पक्षी आदि, और पोतज अर्थात् जन्म लेने के पश्चात् जल्दी ही दीड-भाग कर सकने वाले हरिण आदि गर्भज होते है। नाना प्रकार के कीड़े-मकौडे आदि जीवो का जो गर्भज नही है, सम्मूछिमज होते है । देव और नारक औपपातिक कहलाते है । सुष्टि के समस्त प्राणी इन तीनो में से किसी एक प्रकार से जन्म धारण करते है ।
हाँ, जो महाभाग नवीन आयु का वन्ध नहीं करते, और कार्मण शरीर का भी अन्त कर देते है, वे अजन्मा हो जाते है । वे जन्म-मरण से मुक्त सिद्ध परमात्मा कहलाते है।