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आध्यात्मिक उत्क्रान्ति
चौदह गुणस्थान आत्मा की क्रमिक उत्क्रान्ति-जैनधर्म का मन्तव्य है कि विश्व में अनन्तअनन्त आत्माएं है और उनकी अपनी स्वतन्त्र सत्ता है, वे किसी एक विराट् सत्ता का अश नहीं है, हाँ, सभी आत्माओ का मूल स्वभाव समान है, उसमे कोई विलक्षणता नही, भेद नही, फिर भी उनका अस्तित्त्व पृथक्-पृथक् ही है।
प्रत्येक प्रात्मा का मौलिक स्वरूप एक होने पर भी ससार की आत्माओ में जो विभिन्नता दृष्टिगोचर होती है, वह औपाधिक है । कमों के प्रावरण की तरतमता के कारण ही आत्मा-पात्मा मे भेद दिखाई देता है । आवरण की तरतमता अनन्त प्रकार की है, अतएव आत्मा के स्वाभाविक गुणो के विकास और ह्रास की दशाएँ भी अनन्त है। फिर भी ज्ञानियो ने उन दशानो का वर्गीकरण किया है और वह भी अनेक प्रकार से---
___ एक वर्गीकरण के अनुसार विकास-दशा की दृष्टि से प्रात्माएँ तीन प्रकार की होती है---
१. वहिरात्मा (मिथ्यादी) २. अन्तरात्मा (सम्यग्दर्शी) ३ परमात्मा
(सर्वदर्शी)