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उल्लो सुक्खोव दो छूडा, गोलया मट्टियामया। दो वि आवडिया कुड्डे, जो उल्लो सोत्थ लग्गई ॥ एवं लग्गन्ति दुम्मेहा, जे नरा काम लालसा । विरत्ता उ न लग्गन्ति, जहा से सुक्क गोलए ।
-उत्तराध्ययन, अ० २५, गा० ४२-४३ । हे गावक जिस प्रकार एक सूखी मिट्टी का और एक गीली मिट्टी का गोला दीवार मे फेका जाय, तो गीला गोला दीवार से चिपक जाता है, सूखा नही चिपकता, उसी प्रकार जो काम-लालसा मे आसक्त, और दुप्ट-बुद्धि वाले मनुष्य होते है उन्ही को संसार का वधन होता है और जो काम-भोग से विरत होते है, उन को बंधन नहीं होता।'
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प्राध्यात्मिक उत्कान्ति