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गम्यग्ज्ञान
नहीं है, मगर देता है। और दीये है। नाम
है,
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परमाणु हैं, उसी प्रकार का सूक्ष्म भाग है। परमा में प्रि वेग होता है, वह एक समय में सम्पूर्ण लोकमार बतलाते हैं कि परमाणु पाव की भयानकनपटी में गुर भी नही, पानी मे गलना नहीं, नटना नहीं
श्रभेद्य, प्रछेद्य, वास है-यविनम्र है । हो, किनी तो उनका परमाणु-पर्याय नहीं रहता, गाणी के पृथक् होने पर वह पन परमाणु का रूप जैन धर्म का परमाणु विज्ञान
साहित्य में जितना चिन्तन एवं उतना विश्वसाहित्य ने कही सत्य नहीं । परमाणु-युग है, किन्तु जैन परमाणु विज्ञान की जायेगा कि आज के ऋण-वैज्ञानिक वास्तविक है । उसे पाने के लिए अब भी गहरा गोता लगाने की आवश्यकता है । अणुनेद की जो बात आज कही जा रही है, वह वस्तुतस्तन्यमेव पिण्डभेद है । ऋणु तो अविभाज्य है ।
नही पहुंच सके
प्रवेश
सकता । परमाण में उसमें एक वर्ण, एक गथ, एक रस आम का पलक गिराने में
श्रण को जैनमास्त्र
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होना नहीं यह में जब जाता है बनती है। है।
और गम्भीर है। न
विषय में
है, धान का भुग परराष्ट हो
एक श्रृणु का दूसरे अणु के साथ किस प्रकार योग प्रर्थात् बंध होता है ? किन विशेषतायो के कारण परमाणु परस्पर वह होते है, यह जानने के लिए जैनागमो का अभ्यास करने की आवश्यकता है । (देसिए - भगवती सूत्र, पन्नवणासूत्र, पंचास्तिकाय तत्त्वार्थमूत्र, श्रादि) ।
शब्द परमाणुजन्य नही, स्वन्वजन्य है, दो स्कन्धों के संघर्ष से शब्द की उत्पत्ति होती है । कई भारतीय ग्राचार्य शब्द को अमूर्त आकान का गुण कहते हैं, मगर मूर्त का गुण मूर्त्त नही हो सकता । शब्द मूर्त है, यह जैन मान्यता आज विज्ञान द्वारा भी समर्थित हो चुकी है। शब्द का कूप आदि मे प्रतिध्वनित होना और ग्रामोफोन में बद्ध होना उसके मूर्त्तत्व वा प्रमाण है ।
पुद्गल का चमत्कार -- उपर्युक्त छह द्रव्यो का विस्तार ही यह जगत् है | इसमें इनके अतिरिक्त कोई सातवा द्रव्य नही है ।
१, अनुयोगद्वार । २ स्थानांग स्थान, ३ उद्देशा ० ३ सू० ८२ ३ उत्तराध्ययन, अ० २८, मा० ८ ।