________________
( ५४ ) का परिणाम है। केवल जड़ाणु से निपटने से यह सत्य उपलब्ध नहीं हुआ है - काल समस्त निर्माण का कारण है अतः ध्वंश का भी। काल ज्ञान द्वारा निर्माण व ध्वंश दोनों का सामर्थ्य उपलब्ध होता है।
आज भारतीय सन्त-योगी परम्परा विध्वस्त होचुकी है। जो कतिपय मूर्तियां अज्ञात के कक्ष में रही आज भी विशेष शक्ति को धारण किये हुये हैं वे इस बात का आवश्यकता पड़ने पर प्रमाण दे सकती हैं कि काल बोध के उपरांत मात्र विचार माध्यम के उपयोग से किसी भी पदार्थ के निर्माण व ध्वंश की लीला को क्षणांश मात्र में घटाया जा सकता है।
महावीर की मेधा नहीं रुकी, आगे बढ़ते हुये उसने यह .. व्यवस्था क्रम बताया कि भूत का व भविष्य का कोई ओर छोर नहीं, पर वर्तमान हमारे सामने सुस्पष्ट है- यही वर्तमान प्रत्यक्ष सत्य है । वास्तव प्रत्यक्ष होने के कारण (क्योंकि भूत तो अविद्यमान होचुका और भविष्य अभी विद्यमान बना नहीं है। यही उपयोगी है एवं तात्विक दृष्टि से यह सचमुच एक समय मात्र
का होता है, द्वितीय समय में तो सब कुछ बदल जाता है-काल न . जाने कितनों का कितना और कैसा परिवर्तन कर देता है; (इसमें कुछ व्यक्त कुछ अव्यक्त भी हो सकते हैं)। कितने पदार्थ (वास्तव में सब पदार्थ) दूसरे समय में भूत का निर्माण व भविष्य का नाश करते हुये वर्तमान पर आ खड़े होते हैं। व्यवहार में भले ही किसी के लिये संख्यातीत समयों का समूह - क्षण सत्य हो, किसी के लिये प्रहर, किसी के लिये वर्ष व शताब्दियां तो किसी के लिये न जाने