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मानव को जब चेतन के रूप में समझने का प्रसङ्ग आता है तो उसके सम्बन्ध धर्मों के लिये उतने ही सूक्ष्म स्कंध व अणु की गहराई में उतरना अनिवार्य है। इस तरह क्रमशः अंतरङ्ग से अंतरङ्ग तत्त्व की शोध की जा सकती है और सापेक्ष निरपेक्ष द्वारा वह शोध परिपूर्ण होती है।
महावीर के इस विवेचन ने एकांतवाद के पृष्ठपोषकों को सिहरा दिया, निरुत्तर हो ही चुके वे पर व्यर्थ का बकवाद सदा करते रहे ।
आज वैज्ञानिक आइनस्टाइन ने संसार की आंखें कम से कम सापेक्ष स्वरूप के विषय में तो खोल दी हैं एवं विरोधियों को निरुत्तर कर दिया है । किसी भी वस्तु का सांयोगिक संबंध को लेकर पाया जाने वाला परिचय न स्थिर होताहै न पूर्ण और गहराई से देखा जाय तो यह ज्ञात हो सकता है कि तदरूप में भी उसके अन्य संयोगों के अनुसार अन्य परिचय विद्यमान रहते हैं ये अन्य भिन्न २ परिचय, प्रसंग या उपयोगानुसार प्रधान व गौण हुआ करते हैं आज इस सत्य के आधार से समस्त विज्ञान का भविष्य उज्वल हो चुका है पर यह धारणा यूरोप की नहीं है, है भारत की। सर्व प्रथम भारत की । भारत ने इस तात्विक निर्णय का आविष्कार किया था तभी उनका न्याय संसार में सर्वोत्तम है ।
निरपेत सापेक्ष को स्वाभाविक शब्दों में समझाने के लिये महावीर ने कहा कि द्रव्य, गुण व पर्याय युक्त है केवल गुण अथवा केबल पर्याप्त से सत्य का दिग्दर्शन नहीं होता, दोनों मिल कर ही द्रव्य का पूर्ण परिचय कराते हैं। एक को बिदा देने से दूसरे का
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