________________
जैन दार्शनिक संस्कृति
एक विहंगम दृष्टि
मारतीय संस्कृति के इस विशिष्ट अङ्ग का महत्त्व कितना है और इसकी वाटिका में प्रफुल्लित पुष्पों द्वारा मानव जाति का घायु-मण्डल कितना सुरभित हुआ है, इसे इनेगिने व्यक्ति ही
आज जानते हैं । तत्त्वज्ञान की गहराई में गोता लगाकर व्यवहारिक व नैसर्गिक सूक्ष्म विचार-रत्नों को व्यक्त करने का श्रेय जितना इस अङ्ग ( इसके आज के स्वल्पोपलब्ध साहित्य को देखने से विदित होता है ) को है, अन्य किसी भी अङ्ग को नहीं दिया जा सकता। ___ वर्तमान अनुश्रुति के आधार पर भारतीय संस्कृति के उत्थान काल में जैनधारा का या अन्य दार्शनिक धाराओं का पारस्परिक पृथकत्व इतना वीभत्स रूप से व्यवहार में नहीं उतराथा कि आज की तरह एक दूसरे को लोग घृणा की दृष्टि