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लेखक को ऐसी सुन्दर पुस्तक लिखनेकेलिये हम बधाईदेतेहैं और अन्त में पुस्तक की कुछ कमियों की ओर भी ध्यान आकृष्ट करातेहैं-प्रथम तो पुस्तक की भाषामें थोड़ा परिवर्तन आवश्यक है। दर्शन शास्त्र स्वयं ही एक गहन विषय है यदि भाषा भी गहन साहित्यिक हो तो विषय और दुरूह बन जाता है अतः भाषा को परिष्कृत करने की आवश्यकता है। दूसरी और बड़ी कमी यह है कि समस्त पुस्तक में कहीं भी कोई विभाग या शीर्षक वगैरह नहीं है प्रारम्भ से आखिर तक एक ही प्रवाह बहता गया है। अतः पाठक इसे देखते ही ऊब उठेगा और पूरी पुस्तक देखे बिना उसका काम नहीं चल सकेगा । यदि विषय वार विभाग करके वीच २ में छोटे २ शीर्षक भी दिये होते तो पुस्तक अधिक उपयोगी और आकर्षक होती।
तीसरी कमी यह है कि प्रत्येक द्रव्य का वर्णन करते हुए सबसे प्रथम उसका स्वरूप स्पष्ट कर देना चाहिये उसके बाद उसकी समीक्षा तुलना वगैरह की जानी चाहिये।
आशा है कि दूसरे संस्करण में ये कमियां दूर करदी जायेंगी तो पुस्तक बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगी। अन्त में हम लेखक के सुन्दर प्रयत्न की सराहना करते हुए यह आशा