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६५. ) अकर्मण्य बने रहने की अपेक्षा विद्या व बुद्धि कौशल का प्रयोग कर ज्ञान विज्ञान की शोध व उन्नति करते हुये मर जाना कहीं लाख दरजे उत्तम है - भारतवासी यह पाठ भूल गये । पर आज यह अत्यधिक अपेक्षित है कि प्राचीन गूढ़ रहस्यमयी विद्याओं के लुप्त प्राय ज्ञान साहित्य की जो कुछ रश्मियां अद्यावधि अवशिष्ट हैं उनको एकत्रित कर पुनः उनके सामुहिक विकास से अधकार को दूरकर ज्ञानालोक द्वारा मानव का उन्नति पथ गमन सार्थक किया जाय । __यह मनीषियों से अविदित नहीं है कि केवल भौतिक धारा को कतिपय अंशों में प्रवाहित करने में समर्थ हुये पाश्चात्यवासी आध्यात्मिक धारा के गम्भीर रहस्य को हृदयङ्गम कर उसके शांत अनुव सित बहाव द्वारा मानवता को प्लावित करने की कला से अनभिज्ञ है। तभी निर्माण के स्थान पर उनकी कृतियां अधिकांश में ध्वंश की कथा ही कहती रहती हैं । भारतीयों का कर्तव्य है कि चेतन की आध्यात्मिक महत्ता का दिग्दर्शन करावें ताकि संहार के स्थान पर सृष्टि की रचना भी की जा सके ।
जैन सिद्धांत का पूर्व साहित्य अद्भुत था यह निस्सदेह है। आज जैसी २ कथायें प्रसिद्ध हैं उनसे कुछ २ आभास मिलता है कि प्रयोग किये जाने पर क्या २ और कैसे २ परिणाम सम्भव होते थे, इनमें से अनेक अत्यन्त उपयोगी व अद्भुत थे व
आधुनिक विज्ञान की प्राप्तियों के साथ उनकी तुलना भी की जा सकती है। किसी अयोग्य शिष्य के असामयिक आवेश.को देख समस्त भावी संतति के लिये अयोग्यता का प्रमाण पत्र लिख