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सर्वज्ञवाद
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अर्थात् जिसने अन्य किसीके उपदेश आदिकी सहायताके विना ही दूर रहे हुये सूर्य चंद्रादिक के ग्रहण वगैरहको निर्विवाद रातिसे जनाया है वह उस विषयका जानकर अवश्य ही है। तात्पर्य यह कि दूरातिदूर रही हुई वस्तुओको एवं जहाँपर बुद्धिवान मनुप्यकी भी बुद्धि नहीं पहुँच सकती और जो इंद्रियों द्वारा दुर्जेय है उन विपयोंको भी जाननेवाला कोई व्यक्ति अवश्य होना चाहिये
और वह सर्वशके सिवा अन्य कोई हो नहीं सकता । इस प्रकार इस तरहके अनेक प्रमाण मौजूद हैं कि जिनसे बहुत ही सरलता पूर्वक सर्वज्ञकी सिद्धि हो सकती है। इस लिये आपने जो यह फरमाया कि सर्वज्ञकी सिद्धिके लिये प्रमाण ही नहीं मिलता यह विलकुल असत्य है।
जैमिनि-महाशयजी! सर्वज्ञकी सिद्धिमें रुकावट करनेवाले अन्य बहुतसे प्रमाण हैं और जहाँतक इस विषयमें वाधक प्रमाण मौजूद हैं तहाँतक सर्वज्ञको किस तरह माना जाय ?
जैन-श्राप कृपया हमे यह बतलाइये कि सर्वशकी सिद्धिमें कौन कौनसे प्रमाण रुकावट करते हैं।
जैमिनि-प्रथम तो प्रत्यक्ष प्रमाण ही सर्वज्ञकी सिद्धिमें रुकावट करता है।
जैन-आप जरा कृपाकर हमे यह समझाइये कि प्रत्यक्ष प्रमाण सर्वक्षकी सिद्धिमें किस तरह रुकावट करता है? क्योंकि हमारी मान्यता मुजब सर्वश और प्रत्यक्ष प्रमाणके बीच किसी प्रकारका विरोध ही मालूम नहीं पड़ता एवं इस प्रकारका कोई सम्बन्ध भी. नहीं है कि जो इस वातमें रुकावट कारक हो सके ।
जैमिनि वर्तमान समयमें कोई ऐसा हो यह प्रत्यक्ष प्रमाणसे जाना नहीं जा सकता, इसी कारण सर्वज्ञकी सिद्धिका यह प्रमाण निषेध करता है।
जैन-महाशयजी! आपकी यह दलील ठीक नहीं है, क्योंकि भूत पिशाच वगैरह भी प्रत्यक्षतया नहीं देख पड़ते, सूर्य और चंद्रमाका ऊपरी भाग तो दूर रहा परन्तु नीचेका भाग भी प्रत्यक्ष तया देख नहीं पड़ता एवं पूर्वकालमें होगये हुये हमारे पूर्वज भी