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ईश्वरवाद्
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और इसके कारणोंके साथ किसी प्रकारका सम्बन्ध हो नहीं सकता। क्योंकि सम्बन्ध तो अस्तित्व रखनेवाली वस्तुका ही होता है; परन्तु जो वस्तुरूप ही न हो उसका कभी सम्बन्ध न हुआ और न ही हो सकता है । इस प्रकार कारणोंके साथ सम्बन्ध न रखनेवाले कर्मनाशरूप अभावको यह रचना - बनावटका नियम लागू ही नहीं पड़ता और इस प्रकार सर्वत्र सर्व रचनाओं में समान तया लक्षण न घटनेके कारण यह आपका रचनाका नवीन कायम किया हुआ स्वरूप भी अभी अपूर्ण ही है और अपूर्ण लक्षणके द्वारा सिद्ध की हुई वस्तु भी अपूर्ण ही रहती है ।
कर्तृवादी - खैर यह लक्षण भी आपको अपुर्ण ही मालूम देता है तो इसे भी जाने दो । जिस वस्तुको देखनेसे वह बनी हुई है यह भाव पैदा होता हो हम उसे ही रचना मानते हैं । यह जमीन पर्वतादि देखनेसे हरएक मनुष्यके दिलमें यह विचार उत्पन्न होता है कि यह सब कुछ बनावट याने रचना है, जब रचना है तो उसके रचनेवाला पुरुष भी होना ही चाहिये यह तो स्वयं ही सिद्ध है ।
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अकर्तृवादी महाशयजी ! विचार किये विना ही बाह्य दृष्टिसे देखनेसे तो यह आपकी नूतन लक्षण जरा यथार्थ देख पढ़ता है, परन्तु विचार पूर्वक विशेषावलोकन करनेसे यह लक्षण भी त्रुटिपूर्ण ही मालूम होता है । इस लक्षणकी त्रुटियां समझने के लिये आप जरा ध्यान दीजिये । जहाँ पर आकाश नहीं मालूम होता वैसी जगह में गढ़ा खोदने से वहाँ पर भी आकाश हो सकता है और उस खोदे हुए गढ़ेको देख कर हरएक मनुष्यको यह किसीका बनाया हुआ है ऐसा भाव भी पैदा होता है, इस लिए इस आपके नवीन लक्षणको कायम रखनेसे तो इस आकाश तत्वको भी जिसे कि आप किसीकी रचना नहीं मानते हैं, किसीका बनाया हुआ ही मानना पड़ेगा और यह कोई छोटा मोटा नहीं किन्तु बड़ा भारी दूपण है ।
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कर्तृवादी- आपने तो हमारे तमाम लक्षणोंको दूपित ठहराने के लिये ही कमर कसी मालूम देती है । खैर जाने दो हमारे ये