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प्रमाणवाद
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क्रोध, मान, माया, लोभ, राग, द्वेष और मोह, एवं जमानमें लेटना पड़ना, और वेग आदिका कारणरुप होनेसे या उन सवका अकारणरूप होनेसे अनन्त धर्मवाला हो सकता है । तथा वह घड़ा ऊंचे फेंकना, नीचे फेंकना, संकुचित होना, फैलना, परिभ्रमण करना, झरना, रीता होना, भरा जाना, चलना, कंपित होना, दूसरी जगह, लेजाना, पानी लाना और पानी भर रखना, इत्यादि अनन्त भिन्न २ फियाओंका कारणरूप है। अतः उल घटके क्रियारूप स्वधर्म अनन्त हो सकते हैं। जो पदार्थ उपरोक्त क्रियाओंके कारणरूप नहीं हैं उनसे घट भिन्न होनेके कारण उसके परधर्म भी अनन्त ही हो सकते हैं । यह क्रियाकी अपेक्षा घटका वृत्तान्त बतलाया, अब सामान्यकी अपेक्षासे घटका वर्णन इस प्रकार है
ऊपर कयन किये मुजव, भूत, भविष्य और वर्तमान कालमें जो वस्तुमात्रके अनन्त स्व और परपर्याय बतलाये हैं उनमेंले किसीके एक पर्यायके साथ, किसीके दोके साथ और किसीके अनन्त धर्मोके साथ घटकी अनन्त भेदवाली समानता होनेसे इस अपेक्षासे भी घटके स्वधर्म अनन्त हैं। विशेषकी अपेक्षासे भी घट अनन्त पदार्थों के किसीके एक धर्मसे, किसीके दो धाँले और किसीके अनन्त धाँसे विलक्षण होने के कारण इस अपेक्षासे भी घटके अनन्त स्वधर्म हैं । अनन्त धर्मोकी अपेक्षा घटमे रहा हुआ मोटापन, पतलापन, समानता, टेढापन, बोटापन, बड़ापन चमक, सुन्दरता, चौड़ाई, छोटापन, नीचता,ऊंचता और विशाल मुखपन इत्यादि एक एक गुण अनन्त प्रकारके हैं अतः इस गीत से भी घटमै अनन्त धौंका समावेश हो सकता है । सम्बन्धकी अपेक्षा घड़ा श्राज अनन्त कालसे और अनन्त पदार्थोंके साथ अनन्त प्रकारका आधार आधेयका सम्बन्ध धारण करता है, अतः उस अपेक्षासे भी उसके अनन्त स्वधर्म गिने जा सकते हैं। इस प्रकार स्व स्वामिका सम्वन्ध, जन्य जनकका सम्बन्ध, निमित्त नैमित्तिकका सम्वन्ध, कारकोका सम्वन्ध, प्रकाश्य प्रकाशकका सम्वन्ध,भोज्य भोजकका सम्बन्ध, वाह्य वाहकका सम्वन्ध आश्रय आश्रयिका सम्बन्ध, वध्य वधकका सम्बन्ध, विराध्य विरोधकका
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